शनिवार, 22 जनवरी 2011

आहट

आहटों का क्या भरोसा बोल दें कब
हाशिए से हसरतें कब छिटक जाएँ
एक अंजुरी में सागर की लालसा चपल
लहरों पर आकाँक्षाओं के दीपक सजाएँ

रंगमयी कामनाओं की रंगोली धवल
देह देहरी बंदनवार की स्वागती छटाएं
एक कंपित टहनी पर ठहरी बूँद
निरख रही पुष्प की अभिनव अदाएं

भाव के अलाव में ठिठुरन कहाँ
अगन मन मगन हो धधकती जाये
जलने-जलाने का यह अनवरत क्रम
विरह की मिलती है क्यों रह-रह सदाएं

क्यारियों में बंटी हैं वाटिकाएं
प्यार की रचती शाखाएं–प्रशाखाएं
हो विभाजित कब मिली परिपूर्णता
आहटों को पकड़ चलो खिल जाएँ   
  


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

रविवार, 16 जनवरी 2011

रचयिता

सांखल बजती रही भ्रम हवा का हुआ  
कल्पनाओं के सृजन की है यही कहानी
डूब अपने में किल्लोल की कमनीयता लिए
रसमयी फुहार चलती और कहीं जिंदगानी

हर नए झोंके में नवगीत लिए थाप है
एक नए बंदिश ने छेड़ी अपनी मनमानी
एक नए आकाश में कंदील नया जला
भावनाएं खिल उठीं कल्पनाएँ ले नादानी

निखर उठे नाज़-ओ-अदा ताप बिसर
खुसुर-फुसुर बनने लगी नयी कहानी
रचयिता की चल पड़ी अंगुलियाँ लिखने नया
कल्पनाएं निखर गयीं और राह अनजानी

प्राप्ति की संभावनाएं साज़ दिल की बनी 
व्याप्ति की आकांक्षाएं लगे दिलबर जानी
बांटने का सुख कोई इन दीवानों से सीखे
यथार्थ की खोह में ढूँढते आँखों का पानी.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.