मंगलवार, 12 अगस्त 2025

जुगलबंदी

 लय में बंधी रहोगी धुन में बंधी रहोगी

संगीत जीवन का दिया तुम्हारा सानिध्य

गीत रचने लगे भाव रंग-रंग के खिलें 

होता है ऐसा ही मन का मन से आतिथ्य



लय में बंधी रहोगी धुन में बंधी रहोगी

संगीत जीवन का दिया तुम्हारा सानिध्य

गीत रचने लगे भाव रंग-रंग के खिलें 

होता है ऐसा ही मन का मन से आतिथ्य


कपोलों में हंसती थी चुराती जो अंखिया

खिल मुझसे लिपट जाता था वह साहित्य

दिल की धड़कनों पर दौड़ता बोलता मन

क्या-क्या न रच गईं तुम प्यार का आदित्य


भावनाओं को शब्दों की चूनर थी चढ़ाती

यूट्यूब में गीतों का था अभिनव दृश्यव्य

यत्र-तत्र प्रकाशित होती थी गुंजन तुम्हारी

कई सुरों का बखूबी बतला थी महत्व


वह अपनी जुगलबंदी थी छाप थी अलग

किस कदर परिवेश में था तुम्हारा आधिपत्य

प्रसिद्धि न संभाल सकी चापलूस पैठ गए

हर डगर समावेश में गा पुकारा किए अनित्य।


धीरेन्द्र सिंह

12.08.2025

17.23