उत्सव है, खुशियां हैं, वस्त्रों की झंकार है
भीड़ सुबह दुकानों पर उड़ रहा प्यार है
यह भी एक चर्चा है त्यौहार बस पर्चा है
रक्षाबंधन से प्रारंभ पर्व संबंधों का दर्जा है
अजीब सुगबुगाहटों संग सजग संसार है
भीड़ सुबह दुकानों पर उड़ रहा प्यार है
विश्वास का यह धागा पारंपरिक बंधन अटूट
एक सुरक्षा अभेद्य शौर्य, कीर्ति, चाह सम्पुट
इसपर भी आक्रमण सब प्रयास बेकार हैं
भीड़ सुबह दुकानों पर उड़ रहा प्यार है
अबकी राखी बंधी पहले से अधिक जंची
धूल-धक्कड़ न बसे दुकानों ने नीति रची
त्यौहारों में भी अब सचेतक हुंकार है
भीड़ सुबह दुकानों पर उड़ रहा प्यार है।
धीरेन्द्र सिंह
09.08.2025
15.09