पौधे की टहनी
खिला हुआ फूल
पकड़ी हथेली देख
फूल गया भूल
गुलाबी गदरायी हथेली
पौधे को दे तूल
पुष्प खिलाया अभिनव
जैसे हथेली फूल
तुम निस दिन संवारो
पौधे में नव फूल
हतप्रभ सुंदर पुष्प
जीवन यही समूल।
धीरेन्द्र सिंह
24.08.2024
19.08
पौधे की टहनी
खिला हुआ फूल
पकड़ी हथेली देख
फूल गया भूल
गुलाबी गदरायी हथेली
पौधे को दे तूल
पुष्प खिलाया अभिनव
जैसे हथेली फूल
तुम निस दिन संवारो
पौधे में नव फूल
हतप्रभ सुंदर पुष्प
जीवन यही समूल।
धीरेन्द्र सिंह
24.08.2024
19.08
चालित, स्वचालित या संचालित
यूं रहस्यमय हों जैसे कापालिक
पूर्णता, अपूर्णता या संपूर्णता
प्रगति के दौर बड़े तात्कालिक
रात्रि अलाव दिखा अग्नि भभकी
स्वाहा हो चुका तब पुलिस पहुंची
अहंकार, अहंधार या आत्महुंकार
ढूर-दराज हालत यही सबकी
कौन सहे, कौन गहे, कौन बहे
कौन है सत्य है कौन प्रामाणिक
कौन गहे, कौन मथे, कौन सधे
कौन तथ्य है जो संवैधानिक
दूर कहीं जमघट में हो रही चर्चाएं
अबकी पर्व में कौन होगा सनकी
100 नंबर डायल किया बात हुई
सुबह खबर थी गए पकड़े ठरकी।
धीरेन्द्र सिंह
24.08.2024ठरकी
14.37
एक कुंवारी सांझ हो तुम
कोमल मद्धम आंच हो
दिन बहुत छका चला अब
एक तुम्ही सहेली साँच हो
उपवन में सब फूल सूख रहे
तुम ही करुणा गाछ हो
जरा ठहर सुस्ताए जिंदगी
खुश मौसम का उवाच हो
दिन षड्यंत्र कर चलता बना
वह ढूंढ लिया जहां कांच हो
रात्रि बेला कर रही तैयारी
कब, कैसे उपद्रवी नाच हो
हे सांझ कुंवारी तुम ही कहो
कहां ऊर्जा संचयन खास हो
इधर-उधर जल रही आग है
बुझ जाए ऐसी कोई पांत हो।
धीरेन्द्र सिंह
23.08.2024
16.39
कथ्य की कटोरी में भावनाओं की छलकन
समझ ना पाएं हो जाती है अजब अनबन
कथ्य एक प्रकार कथा, भावनाएं मनोव्यथा
कहनेवाला कहे यथा भावनाएं होती तथा
अभिव्यक्तियों के लहजा में होती लटकन
समझ ना पाए हो जाती है अजब अनबन
वार्ता में जब होते विषय विचार सोचे सुजय
शब्दों की दौड़ हो संपर्क तब बने अविजय
प्रवाह तंद्रा में कुछ शब्द अजूबे भी बनठन
समझ ना पाए हो जाती है अजब अनबन
चैट में तो चेहरा भी नहीं शब्द ही संसार
रोका न जाए तो भावनाओं की बहे धार
हास्य, किल्लोल, छेड़ना आदि के मनधन
समझ ना पाए हो जाती है अजब अनबन।
धीरेन्द्र सिंह
22.08.2024
19.41
पहली बार जो देखा उनका फोटो
गाल गुलाल कमाल धमाल समान
मुग्धित मन सौंदर्य निरखते बहका
देने लगा नयन, अधर को सम्मान
चलते-चलते भाव फिसलते बहलते
श्रृंगारित शब्द लाया प्रणय अभिमान
सक्रिय छुवन अनुभूति चैट एकतरफा
उलझन क्या कहें सुजान या नादान
सावन के झूले सा शब्द लगा रहे पेंग
एकतरफा लेखन दूजी ओर संज्ञान
लेखन को रोका विवेक तब शांत हुए
मैसेंजर पर जमे हुए दुई विद्वान।
धीरेन्द्र सिंह
21.08.2024
11.35
तुम्हें जो सजा दूँ शब्दों से तुम्हारे
महकने लगेंगे वह सारे किनारे
जहां कामनाओं का उपवन सजा
प्रार्थना थी करती सांझ सकारे
एक संभावना हो दबाई कहीं तुम
कई भावनाएं मधुर तुम्हें हैं पुकारे
तुम्हें खोलने को खिल गईं कलियां
सूरज भी उगता है द्वार तुम्हारे
उठा लेखनी रच दो रचना नई
अभिव्यक्तियां भाव हरदम पुकारे
कल्पनाएं सजी ढलने को उत्सुक
प्रीति रीति साहित्य कुहूक उबारे।
धीरेन्द्र सिंह
20.08.2024
21.00
आपसे मिल नहीं सकता कभी
क्यों लग रहा सब हासिल है
बेमुरव्वत, बेअदब सिलसिला है
वो मग़रूर हम तो ग़ाफ़िल हैं
चंद बातों में खुल गए डैने
यूं लगे आसमां भी शामिल है
उड़ रहा तिलस्म का उठाए बोझा
दिल ही मुजरिम दिल मुवक्किल है
उनकी अदालत में डाल दी अर्जियां
अदालत ढूंढ रही कौन कातिल है
मुकर्रर का कुबूल है कह दिए उनको
ज़िरह में देखिए होता क्या हासिल है।
धीरेन्द्र सिंह
21.08.2024
14.04
मन उलझा एक द्वार पहुंच
प्रीति भरी हो रही है बतियां
सांखल खटका द्वार खुलाऊँ
डर है जानें ना सब सखियां
बतरस में भावरस रहे बिहँसि
गति मति रचि सज रीतियाँ
नीतियों में रचि नवपल्लवन
सुसज्जित पुकारें मंज युक्तियां
देख रहे संस्कार पुकार मुखर
दिलचाह उछलकूद निर्मुक्तियाँ
या तो परम्परा की रूढ़ियों गहें
या वर्तमान गति की नियुक्तियां।
धीरेन्द्र सिंह
21.08.2024
12.10
खुला रुंधा स्वर दिव्यता पसर गयी
राखी का त्योहार तृष्णापूर्ति कर गयी
प्रत्येक जुड़ा रचनाकार कुछ लिख गया
प्रत्येक मिठास सिंचित तर कर गयी
भावनाओं के व्यूह में अपने ही छत्रप
चेतनाएं संकुचित स्वार्थ भेद भर गई
रणदुदुम्भी भी बोल चुप निष्क्रिय रही
वेदिकाएं प्रज्ज्वलित नारियां विकल भई
बहन एक भाव या कि मात्र अनुभूति
रक्षाबंधन अभिनंदन फिर धर गयी
बहन भाव का निभाव स्वभाव बसे
नारी वेदना क्यों समाज अधर भई
रक्षा पर्व है गर्व उत्कर्ष बहन-भाई
इसी समाज में युवती दे रही दुहाई
रक्षा बहन का भाई का निज धर्म
नारी यातना रुके बंधन की बधाई।
धीरेन्द्र सिंह
20.08.2024
00.53
दृष्टि को बाधित न कर पाए दूरियां
खींच लेती लटकती रंगीली डोरियां
कोई स्कूटर से उतरे कोई उतरे कार
पैदल कोई अपलक सड़क करता प्यार
शाम का बाजार राखी पर्व अँजोरिया
खींच लेतीं लटकती रंगीली डोरियां
झुंड का झुंड युवतियों की भरमार
राखियां मुस्कराती कर रहीं सत्कार
दुकान दब गई बहना मन आलोड़ियाँ
खींच लेती लटकती रंगीली डोरियां
दृष्टि और राखियों में था गजब संवाद
मिठाई की दुकान पर था स्वाद विवाद
बहन की धूम थी भातृभाव गिलौरियां
खींच लेती लटकती रंगीली डोरियां।
धीरेन्द्र सिंह
18.08.2024
18.27
पुणे का बाज़ार।