शनिवार, 19 मार्च 2011

दर्द रंग में भींगा सकूं


कर्मठता का रंग लिए मैं खेल रहा हूं होली

सूनी आँखें टीसते दिल की ढूंढ रहा हूँ टोली



रंग, उमंग, भाँग में डूबनेवाले यहाँ बहुत हैं

रंगहीन जो सहम गए हैं बोलूँ उनकी बोली



अपनी खुशियाँ सबमें बांटू जिनका सूना आकाश

दर्द रंग में भींगा सकूं ऐसे हों हमजोली



दर्द-दुखों के संग मैं खेलूँ रंग असर रसदार

सूनी आँखों चहरे पर दे खुशियों की रंगरोली



निकल चला हूँ दर्द ढूँढने सड़कों पर गलियों में

मुझ जैसे और मिलेंगे क्या खूब जमेगी होली.






भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

होली की बोली

आपके रंग  लिए उमंग, छेड़े जंग है
आपके विचारों ने, भिंगाया है मन को
आपको सोचता बैठा हूं, गुमसुम सा मैं
खेल रहा होली संग, भूलकर तन को

आपके गुलाल ने, मलाल सारे धो दिए
मेरा भी अबीर, कबीर सा धरे चमन को
दो चमकती ऑखों संग, दो गुलाल भरे हॉथ
अबीर भी अधीर सा, ढूंढे उसी उपवन को

तन की बोली मन की होली, आज हर्षाए
मन है चंचल नाचे पल-पल, नए गमन को
कैसी चूनर, कहॉ वो झूमर, बावरी जुल्फों संग
मैं निहारूं राग-रंग, आपके इस बनठन को

प्यार है, सम्मान है या आप पर है यह गुमान
रंग सारे ले ढंग न्यारे, निहारे आगमन को
एक सोच कल्पना को दे रहा अमराईयां
होली पर बोली है तरसे, श्रृद्धा आचमन को.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 14 मार्च 2011

यह ना समझिए

 
यह ना समझिए कि, दूर हैं तो छूट जायेंगी
अबकी होली में मैंने, खूब रंगने की ठानी है
यह ना समझिए कि, मिल ना सकेंगे हम
आपके ब्लॉग से, मेरे ब्लॉग का दाना-पानी है

कुछ हैं ख्याल अलहदा, कुछ हुस्न रूमानी
कुछ अंदाज़ निराला, कुछ तो ब्लॉगरबानी है
नया रिश्ता है, अहसास रिसता है हौले-हौले
दिल की आवाज यह, ना कहिए नादानी है

मैंने चुन लिया है रंग, आपके ब्लॉग से ही
जश्न-ए-होली की टोली भी वहीं बनानी है
खिल उठेंगे रंग, आपके रंग से मिलकर ही
फिर देखिएगा कि महफिल भी दीवानी है

दिल की आवाज मन में दबाए तो होली कैसी
ज़िंदगी तो फकत अहसासों की मेहरबानी है
मिलूंगा ज़रूर इस होली पर रंग साथ लिए
मेरे रंग से तो मिलिए यही तो कद्रदानी है.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

होली


गुम हो गया है दिल मौसम भी करे ठिठोली
ऋतुओं की चितवन आई रंगों की लिए डोली

यूं तो हैं रंग सारे पर कुछ ही तुम्हें पुकारे
छूने को तड़प रहा दिल नए रंगों के सहारे
सज रही हैं मन में भावनाओं की कई टोली
फागुन में जिसने चाहा ज़िंदगी उसी की हो ली

होरी जो मैं गाऊं बस तुमको ही वहॉ पाऊं
बालक सा हो हर्षित संग पतंग मैं भी धाऊं
मांजे बहुत हैं लड़ते चले बेधड़क बोला-बोली
ले अपने-अपने रंग सब सजा रहे रंगोली

मेरी चुटकी में है गुलाल कर दो ना इधर गाल
ना-नुकुर नहीं आज, है यह रंगों का धमाल
एक नज़र रंग कर देखूं, लगती हो कितनी भोली
खिल जाओ संग रंग अपने, अब कैसी ऑखमिचौली

ना केवल गुलाल नहीं, रंग से भी भिगाना चाहूं
मुझसे बेहतर ना हो रंगसाज, मैं दीवाना चाहूं
पकड़ कलाई ले ढिठाई, बोलूं रस भरी बोली
लचक तुम्हारी अदाओं संग, भर दे तरंग होली.

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.