गुरुवार, 4 जनवरी 2024

बिनकहे

 मुझे हर तरह छूकर तुमने

दिए तोड़ बिनकहे नूर सपने


एक बंधन ही था, जिलाए भरोसा

तुमने भी तो, थाली भर परोसा

यकायक नई माला लगे दूर जपने

दिए तोड़ बिनकहे नूर सपने


वेदना यह नही मात्र अनुभूतियां

प्यार में भी होती हैं क्या नीतियां

प्यार तो अटूट देखे मजबूर सपने

दिए तोड़ बिनकहे नूर सपने


तन की चाहत में है सरगर्मियां

प्यार तो महक दिलों के दरमियां

प्यार बंटता भी है कब कहा युग ने

तोड़ दिए बिनकहे नूर सपने


चाह की राह में कैसा भटकाव

जुड़ी डालियां जब तक ही छांव

कैसा अलगाव खुद को लगे छलने

तोड़ दिए बिनकहे नूर सपने।


धीरेन्द्र सिंह

05.02.2024


08.23


बहेलिया

 प्रहर की डगर पर, अठखेलियां

पक्षी फड़फड़ाए, छुपे हैं बहेलिया


मार्ग प्रशस्त और अति व्यस्त

कहीं उल्लास तो है कोई पस्त

चंपा, चमेली संग कई कलियां

पक्षी फड़फड़ाए, छुपे हैं बहेलिया


लक्ष्यप्राप्ति को असंख्य जनाधार

आत्मदीप प्रज्ज्वलित लौ संवार

सुगबुगाहट में सुरभित हैं बस्तियां

पक्षी फडफ़ड़ाए, छुपे हैं बहेलिया


बहेलिया स्वभाव करे छुप घात

नकारात्मकता से रखे यह नात

कलरव मर्दन करने की तख्तियां

पक्षी फड़फड़ाए, छुपे हैं बहेलिया।


धीरेन्द्र सिंह


04.02.2024

20.47

बुधवार, 3 जनवरी 2024

मस्तियाँ


अजब गजब दिल की बन रही बस्तियां

हर बार धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

तुम के संबोधन को बुरा ना मानिए

सर्वव्यापी तुम ही कहा जाए जानिये

सर्वव्यापी लग रहीं आपकी शक्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

लगन की दहन मनन नित्य कह रहा

क्यों छुपाएं सत्य रतन दीप्ति कर रहा

उलझन समाए भ्रमित भौंचक हैं बस्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

नित नए भाव से मुखर आपके अंदाज

विभिन्न रस सराबोर समययुक्त साज

कलाएं अनेक अद्भुत लगें अभिव्यक्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

लुप्त हुए सुप्त हुए या कहीं गुप्त हुए

मुक्त हुए सूक्ति हुए या वही उपयुक्त हुए

आपकी अदाओं की अंजन भर अणुशक्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी शक्तियां।

 

धीरेन्द्र सिंह


03.02.2024

19.22

मंगलवार, 2 जनवरी 2024

आपकीं लाइक

 मेरी रचना इकाई न दहाई

आपकी लाइक से हर्षाई


अभिव्यक्ति में आसक्ति नहीं

शब्दों में मनयुक्ति नहीं

भावनाओं की है उतराई

आपकी लाइक से हर्षाई


मन उत्साहित है लेखन

शब्द अबाधित हैं खेवन

है रहस्य रचना तुरपाई

आपकीं लाईक से हर्षाई


सत्य ही साहित्य है

तथ्य ही व्यक्तित्व है

सर्जना की ऋतु अंगड़ाई

आपकी लाईक से हर्षाई


स्नेह की स्निग्धता आपूरित

मेघ की निर्द्वंदता समाहित

भावनाएं प्रवाहित छुईमुई

आपकी लाइक से हर्षाई।



धीरेन्द्र सिंह

03.01.2024

10.22

हयवदन

 तृषित नयन डूबे गहन करे आचमन

गहराई की गूंज रचे प्रक्रिया हयवदन


प्रगति की गति नहीं जो मति नहीं

निर्णय कैसा जहां उदित सहमति नहीं

द्वार-द्वार ऊर्जा की प्रज्ज्वलित अगन

गहराई की गूंज रचे प्रक्रिया हयवदन


दृष्टि गरज तो क्या दृष्टिकोण सरस

बदलियां घनी तो क्या व्योम जाए बरस

भ्रम रचित कर्म में युक्तियां गबन

गहराई की गूंज रचे प्रक्रिया हयवदन।


धीरेन्द्र सिंह

02.01.2024

18.10

चांद

 मन भावों की करने गहरी एक जांच

नववर्ष के प्रथम प्रहर निकला चांद


देख चांद मन बोला क्या तुम पाओगे

भाव जंगल मन में भटक थक जाओगे

यहां वेदना सघन कोई न पाता आंक

नववर्ष के प्रथम प्रहर निकला चांद


मनगामी अनुगामी तथ्यपूर्ण है कल्पना

सत्य अल्प अनुभूतियां बाकी है जपना

सब दोहरे हैं सबकी अपनी-अपनी मांद

नववर्ष के प्रथम पहर निकला चांद


क्या प्रतीक है यह और प्रकृति संदेश

ताक रहा भाव नयन से कोई विशेष

सरपंच सा व्योम क्या सुन रहा फरियाद

नववर्ष के प्रथम पहर निकला चांद।


धीरेन्द्र सिंह


02.01.2024

13.57

सोमवार, 1 जनवरी 2024

एक सी बधाई

 मैंने भी लिख भेजा मुझ तक भी आई

नव वर्ष शुभकामना की एक सी बधाई


इसने उसको सबने सबको भेजा कह देखो

हमने तुमको याद किया इसको भी सहेजो

बिन मिले शब्दों में नव वर्ष की अंगड़ाई

नव वर्ष शुभकामना की एक सी बधाई


गैलरी में संदेशों का दिखता नव भंडार

इतना उत्सुक इतना तन्मय प्यार ही प्यार

स्पेस समस्या उभरी कहती करो सफाई

नव वर्ष शुभकामना की एक सी बधाई


एक संदेसा सबको भेजा, एक कर्तव्य है

संपर्क बनाए रखना, मजबूरों का सर्वस्व है

इस वर्ष भी लोगों ने की भावों की चतुराई

नव वर्ष शुभकामना की एक सी बधाई


बिन लगाव किसी इमेज का कॉपी पेस्ट

शब्दों का थोथा चना कहे यही है श्रेष्ठ

यहां दिखावा वहां दिखावा लुभन-लुभाई

नव वर्ष शुभकामना की एक सी बधाई।


धीरेन्द्र सिंह

01.01.2024

15.38

शनिवार, 30 दिसंबर 2023

सिरहाने

 

मैंने तुमको बांध लिया सिरहाने से

जीवन उत्सव होता संग फहराने से

 

क्या घटता क्या बंटता समय आधीन

क्या बचता कब फंसता कर्म आधीन

पनघट रहे छलक भाव संग इतराने से

जीवन उत्सव होता संग फहराने से

 

कब बह जाओ संग समय किलकारी

कहीं रिक्तता रच कहीं नई चित्रकारी

स्वार्थ, भय लिया लपेट सिरहाने से

जीवन उत्सव होता संग फहराने से।

 


धीरेन्द्र सिंह

30.12.2023

13.17

मोहब्बत

 एहसासों के गुलाबी तहमत

खास सोहबत नहीं मोहब्बत


छुवन में हो भावनाएं

अनंत राह की कामनाएं

जिस्म-जिस्म भी जहमत

खास सोहबत नहीं मोहब्बत


व्यक्तिव ना दर्शनीय अस्तित्व

अस्तित्ब तो होता परिवर्तनीय

ठोस पहचान भी रहमत

खास सोहबत नहीं मोहब्बत


बहुत हो दूर, मगरूर

चाह का नूर, दस्तूर

बहुत दूर से निस्बत

खास सोहबत नहीं मोहब्बत।


धीरेन्द्र सिंह


30.12.2023

12.41

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

जिद

 

संवर जाने की जिद नयन जो किए

बदन तब महक चमन हो गया

पलकों की चांदनी छा गयी इस तरह

लगन अलमस्त दहन हो गया

 

मन की बारीकियां होंठ पर छा गयीं

भाव तत्परता से सघन हो गया

ढाँप कर कहन के वह कदम

फिर वही खूबसूरत वहम हो गया

 

देह की दिव्यता में नव अभिव्यक्तियां

आसक्तियों से बदन का नमन हो गया

मन व्याकुल बेचैन होने लगा

कैसे नयनों से भावों का गबन हो गया।

 


धीरेन्द्र सिंह

30.12.2023

02.54

असर कर गए

 इस तरह मन मेरे वह ग़दर कर गए

महाभारत सा मुझपर असर कर गए


युद्ध भावों का लंबे समय से है जारी

युक्ति, छल, कपट की उनकी तैयारी

मुझे चक्रव्यूह के नजर कर गए

महाभारत सा मुझपर असर कर गए


ना कृष्ण जैसे के हाथों में वल्गाएँ

ना अर्जुन सी धनुर्विद्या कामनाएं

निपट अकेला कर डगर धर गए

महाभारत सा मुझपर असर कर गए


युद्ध अनिवार्यता, है जीवन समाहित

स्वार्थ सर्वोच्च, लाभ का जिसमें हित

कौशल युद्ध जो सीखा बब्बर हो गए

महाभारत सा मुझपर असर कर गए


कैसे कह दूं है उनकी कोई यह चाल

लाभ व्यक्तिगत हेतु बनाया मुझे ढाल

चाहतों में फंस वह बसर कर गए

महाभारत सा मुझपर असर कर गए।



धीरेन्द्र सिंह

29.12.2023

15.59