भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
बसंत पंचमी
दे बौद्धिक नमी
उत्सर्जित कल्पनाएं
सुसज्जित हों आदमी
सरस्वती अर्चना
आशीष की ना कमी
आसक्ति जितनी अधिक
ज्ञानवान उतनी ज़मी
हर घर निनाद हो
बसंत से हैं हमीं
यह परंपरा पूर्ण
सर्जनाएँ दे शबनमी।
धीरेन्द्र सिंह
01.02.2025
20.37