ज़िंदगी हर हाल में बहकने लगी
कठिन दौर हंस कर सहने लगी
मासिक किश्तों में दबी हुई मगर
कभी चमकने तो खनकने लगी
बाजारवाद में हर दर्द की दवा हाज़िर
बहाववाद ले तिनके सा बहने लगी
क्रेडिट कार्ड करे पूरी तमन्नाएं अब
ज़िंदगी हंसने लगी तो सजने लगी
सूर्य सा प्रखर रोब-दाब-आब सा
चांदनी भी संग अब थिरकने लगी
लोन से लिपट आह, वाह बने
कभी संभलने तो बहकने लगी
तनाव, त्रासदी से ऊंची हुई तृष्णा
दिखावे में ढल ज़िंदगी बिकने लगी
रबड़ सा खिंच रहा इंसान अब
ज़िंदगी दहकने तो तड़पने लगी.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
बुधवार, 22 दिसंबर 2010
मंगलवार, 21 दिसंबर 2010
प्याज़
नए सफर की ओर चली
लेकर सरपर अपना ताज
नज़र-नज़र को धता बताकर
उछल रही है प्याज
हॉथों से छू भी ना सकें
रसोई को आए लाज
आंसू बिन अंखिया पथराए
बहुत छकाए प्याज
ऊंची उठती फिर आ जाती
जैसे हो सांजिंदे की साज
मगन,मृदुल जिव्हा हो जाती
पाकर मनचली प्याज
मंडी, ठेले के सब मेले
मिल मांगे दुआएं आज
थाली का माली मिल जाए
सबकी हो जाए फिर प्याज.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
लेकर सरपर अपना ताज
नज़र-नज़र को धता बताकर
उछल रही है प्याज
हॉथों से छू भी ना सकें
रसोई को आए लाज
आंसू बिन अंखिया पथराए
बहुत छकाए प्याज
ऊंची उठती फिर आ जाती
जैसे हो सांजिंदे की साज
मगन,मृदुल जिव्हा हो जाती
पाकर मनचली प्याज
मंडी, ठेले के सब मेले
मिल मांगे दुआएं आज
थाली का माली मिल जाए
सबकी हो जाए फिर प्याज.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
रविवार, 19 दिसंबर 2010
मन चिहुंका
शब्दों को होठों से भींचकर
भावना की सीपी को मींचकर
कल्पनाएँ व्यथा की मीत हुईं
बात-बेबात नाराज़गी की रीत हुई
धड़कनों से धड़कनों को खींचकर
चितवन से उपवन को सींचकर
गीत की अठखेलियॉ मन-मीत हुईं
लहरों से लहरों की जीत हुई
आहट से मन को मीत कर
बासंती सरगम की प्रतीत कर
बिरहन राधा सी पीर हुई
चाहत यमुना की तीर हुई
अकुलाहट को पार्श्व में खींचकर
राहत को आहत से जीतकर
मन तरंग रसमयी झंकार हुई
मन चिहुंका फिर वही टंकार हुई.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
भावना की सीपी को मींचकर
कल्पनाएँ व्यथा की मीत हुईं
बात-बेबात नाराज़गी की रीत हुई
धड़कनों से धड़कनों को खींचकर
चितवन से उपवन को सींचकर
गीत की अठखेलियॉ मन-मीत हुईं
लहरों से लहरों की जीत हुई
आहट से मन को मीत कर
बासंती सरगम की प्रतीत कर
बिरहन राधा सी पीर हुई
चाहत यमुना की तीर हुई
अकुलाहट को पार्श्व में खींचकर
राहत को आहत से जीतकर
मन तरंग रसमयी झंकार हुई
मन चिहुंका फिर वही टंकार हुई.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
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