रविवार, 21 सितंबर 2025

शारदेय नवरात्रि

 आज प्रारंभ है अर्चनाओं का आलम्ब है

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है


अपनी-अपनी हैं विभिन्न रचित भूमिकाएं

श्रद्धा लिपट माँ चरणों में आस्था को निभाए

नव रात्रि नव रूप माता का निबंध है

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है


सनातन धर्म जीवन मार्ग सज्जित बतलाएं

नारी का अपमान हो तो कुपित हो लजाएं

नवरात्रि नव दुर्गा आदि शक्ति ही अनुबंध हैं

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है


माँ का आक्रामक रूप राक्षस संहार के लिए

मनुष्यता में दानवता भला जिएं किसलिए

नारी ही चेतना नारी शक्ति भक्ति आलम्ब है

शारदेय नवरात्रि यूं मातृशक्ति का दम्भ है।


धीरेन्द्र सिंह

22.09.2025

07.54

कहीं भी रहो

 सुनो, मेरी मंजिलों की तुम ही कारवां हो

तुम कहीं भी रहो पर तुम ही ऋतु जवां हो


वह भी क्या दिन थे जब रचे मिल ऋचाएं

तुम भी रहे मौन जुगलबंदी हम कैसे बताएं

मैं निरंतर प्रश्न रहा उत्तर अपेक्षित बयां हो

तुम कहीं भी रहो पर तुम ही ऋतु जवां हो


सर्द अवसर को तुम कर देती थी कैसे उष्मित

अपनी क्या कहूँ सब रहे जाते थे हो विस्मित

श्रम तुम्हारा है या समर्पण रचित रवां हो

तुम कहीं भी रहो पर तुम ही ऋतु जवां हो


वर्तमान भी तुम्हारी निर्मित ही डगर चले

कामनाओं के अब न उठते वह वलबले

सब कुछ पृथक तुमसे फिर भी दर्मियां हो

तुम कहीं भी रहो पर तुम ही ऋतु जवां हो।


धीरेन्द्र सिंह

21.09.2025

22.27