शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

लेखन में नारी

 अधिकांश पुरुष के लेखन में केंद्र नारी

त्याग, तपस्या, समर्पण की अभिव्यक्तियां

नारी सब सह ले धरा की तरह

गजब का कपट, पुरुष पार्श्व आसक्तियां


भोली है नारी भावनाओं का है प्रवाह

पुरुष प्रशंसा की करता नित युक्तियां

खुश हो जाती नारी पढ़कर साहित्य

नारी नहीं तो जग में रिक्तियां ही रिक्तियां


वर्षों से लगा है पुरुष नारी रिझाने में

कहता नारी में समाहित सर्व मुक्तियाँ

इस भरम का चरम उत्सवी नरम

स्वाहा कर खुद कितनी खुश हैं नारियां


करते नारीत्व पर चोट ऐसे रचनाकर

नारी पर ही लिखें जैसे पुरुष की न बस्तियां

सभी प्रतीक, उपमा, बिम्ब जुड़ी नारी

लेखन की बेरहम नारी से भरी कश्तियाँ।


धीरेन्द्र सिंह


04.02.2024

10.090

दीवानी


 

प्यार श्रृंगार अधर रचकर

खुमार आधार के अनुरागी

किस रूप मिलन दृग का

क्या प्रणय रीत है सहभागी

 

मुस्कान दबी कथा रचित

किस विधि हो जाते संज्ञानी

बिन संबोधन का सम्मोहन

निस अनुभूति प्रीत अनजानी

 

किस बात अधर पर बात रहे

किस राह सबर की चाह ढहे

कह सकने की जिज्ञासा भी 

किस शब्द को साज सांझ गहे

 

मन मोहित एक पुरोहित है

हर भाव सकल तिरोहित है

अब लगे कठिन है यजमानी

पर कब मानी है प्रीत दीवानी।

 

धीरेन्द्र सिंह

03.02.2024

16.50