सोमवार, 27 मई 2024

देह

 

राधा-कृष्ण, शिव-शक्ति की कर चर्चाएं

प्रेम का रूप गढ़ें, लक्ष्य क्या कौन बताए

यदि आध्यात्म प्यार भक्ति मार्ग जाएं

मानव बीच रहकर देह को क्यों घटाएं

 

ऐसे लोगों का मस्तिष्क अलौकिक चाह

देह से मुक्ति चाहें देह को ही नकार

वासना, कामना का सामना को हटाएं

मानव बीच रहकर देह को क्यों घटाएं

 

बहुरूपिया लेखन का बढ़ रहा है चलन

प्रेम धर्म परिभाषित सहज भाव दलन

देह मार्ग मुक्ति मार्ग सहजता से पाएं

मानव बीच रहकर देह को क्यों घटाएं

 

राधा-कृष्ण छोड़िए शिव-शक्ति भव्य

आत्मधन चाहें नकार कर क्यों द्रव्य

सहज जीवन देह आकर्षण सहज पाए

मानव बीच रहकर देह को क्यों घटाएं।

 


धीरेन्द्र सिंह

28.05.2024

09.56Q

रविवार, 26 मई 2024

प्रेम परिभाषा

 

प्रेम की फिर मिली वही परिभाषा

देना ही देना प्राप्ति की न आशा

 

कहां मिलते ऐसे जो करते ऐसा प्रेम

कब खिलते मन जो करते ऐसा मेल

क्या सही प्रेम में ही जीवन प्रत्याशा

देना ही देना प्राप्ति की न आशा

 

मन बहुत मांगे भाव बहुत कुछ चाहे

तन को क्यों भूलें अलग ही वह दाहे

दावा, क्रोध न बदला, बस अर्पण जिज्ञासा

देना ही देना प्राप्ति की न आशा

 

बोल गईं वह मुझसे सहज थी अभिव्यक्ति

मन को बता गईं पूरा होती क्या आसक्ति

प्रीति रीति अनोखी, अद्भुत, अविनाशा

देना ही देना प्राप्ति की न आशा

 

आभार प्रकट निज हृदय करे बन ज्ञानी

प्रेम डगर निर्मोही राही नहीं हैं अनुरागी

कैसे अपनी प्यास दबे प्रकृति मधुमासा

देना ही देना प्राप्ति की न आशा।

 

धीरेन्द्र सिंह

26.05.2024

10.48



गुरुवार, 23 मई 2024

रिझाना है

 हर उम्र का एक दोस्ताना है

उम्र दर उम्र वही आशिकाना है

कुछ गंभीरता लिए समझदारी भी

जिंदगी को भी तो रिझाना है


तथ्य हैं, कथ्य हैं, सत्य-असत्य है 

लक्ष्य है, लाभ है, पथ्य-नेपथ्य है

दिनचर्या पाठ्यक्रम सा पढ़ जाना है

जिंदगी को भी तो रिझाना है


सहजता अक्सर होती है विवशता

कर्म फेंक रहे भाग्य है कम फंसता

जिजीविषा का बस एक तराना है

जिंदगी को भी तो रिझाना है


देखिए न उम्र का मूक सौंदर्य

कहिए न चाह से करे सहचर्य

मोहित, मुग्धित, मधुर गुनगुनाना है

जिंदगी को भी तो रिझाना है।


धीरेन्द्र सिंह

22.05.2024

21.22



मंगलवार, 21 मई 2024

दहक

 तुम्हें इस कदर हम देखा किए हैं

कि निगाहों को कोई भी जंचता नहीं

खूबी जो तुम में बुलाती हमें ही

तुम्हारे नयन प्यार हंसता नहीं


बहुत जानती हो तराना मोहबत के

एहसासों में यूं कोई बसता नहीं

हुनर प्रीत का बनाती हो मौलिक

किसी और में यह दिखता नहीं


एक चाह का उछाल संबोधन तुम

आप बोलूं तो प्यार झलकता नहीं

एक आदर और सम्मान समर्पित

बिन इसके प्यार खुल हंसता नही 


प्यार तो विनम्रता की उन्मादी हिलोर

बिना तट के प्यार बहकता नही 

लहरों की ऊर्जा हो स्पंदित तुम में

जब तक न बहको दहकता नहीं।


धीरेन्द्र सिंह

21.05.2024

22.30



पलकों की घूंघट

 

पलकों की घूंघट में छिपता है प्यार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

एक हृदय धड़का हो आकर्षित तड़पा

एक खिंचाव अनजान विकसित कड़का

छन्न हुई अनुभूतियां लेकर वह खुमार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

अनजाने प्राण में लगे समाहित प्राण

अपरिचित व्यक्तित्व चावल कहां मांड

दो हृदय एक लगें भीनी सी झंकार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

मानवीय समाज की हैं विभिन्न रीतियाँ

प्यार जताने की नियंत्रित हैं नीतियां

प्यार तो उन्मुक्त नकारे विभक्ति द्वार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

पूछिए दिलतार से भंजित प्यार वेदनाएं

कब छूटा कैसे टूटा भला कोई क्यों बताए

टीस, तड़प, नैतिकता खड़ग की टंकार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार।

 

धीरेन्द्र सिंह

21.05.2024

15.29