रविवार, 20 फ़रवरी 2011

नारी

देखे जब दूसरे ग्रह, हमारी दुनिया सारी
जहाँ भी देखे दिखलाई दे, पुलकित सी नारी
यहाँ जन्म, तो वहां शिक्षा, दिखे तरक्की
कैसे रच लेती है नारी, इतनी सारी क्यारी

अक्सर छुप करती है, मन से अपनी बातें
नयनों में वात्सल्य सदा, लगे दुनिया प्यारी
इल्म, इनायत, इकरार, ना कुछ से इनकार
सर्वगुण संपन्न है यह, जग में सबसे न्यारी

भावुकता संग लिए समर्पण, मन हो जैसे दर्पण
बंधन को कभी ना भूले, ले जिम्मेदारी सारी
चौका-चूल्हा में चुन देते, स्वार्थ के रखवाले
वरना वल्गाएँ हांथों में ले, वक्त पर करें सवारी

यह तो निर्मल जलधारा हैं, बहने दें ना रोकें
शिक्षा, सोहबत, शौर्य, शराफत,सबरंगी संसारी
घर, समाज, विश्व में, जिसके बिना सब मिथ्य
कष्ट, दर्द, को बना हमदर्द, अनुषंगी है नारी.
  



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
 

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

सर्जनात्मकता

 
आज छल है मन अटल है, अपने विश्वास पर
परिस्थितियों का कलकल है, बस शांत हो जायेगा
जो चपल है नित्य धवल है, राग में अनुराग में
कितना भी अनगढ़ रहे वह, तुकांत हो जाएगा

भोर की बांसुरिया हो, या गोधूलि की गुंथन
एक पहर ऐसा भी होगा, आक्रान्त हो जायेगा
सौम्यता की पहचान, आसानी से कब हो पायी
प्रखरता जब आएगी, तो वृत्तांत हो जाएगा

कौन बदला है, किसी परिवर्तन की राह पर
स्वयं को जिसने भी बदला, संभ्रांत हो जाएगा
और अनुकरणीय बनेगा, कर्म से सिद्धांत से
देख उसको छल-कपट, खुद क्लांत हो जाएगा

सर्जनात्मकता हमेशा, परिवर्तन की चाह करे
सर्जक वही बने, जो दिव्यांत हो जाएगा
अपनी धुन में, एक आराधना का धुन लिए
सिल पर रसरी रगड़ते, सुखान्त हो जाएगा.


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.