आँधियाँ
प्रतिदिन दुख-सुख की आंधियां हैं
व्यक्ति तैरता समय की कश्तियाँ हैं
रहा बटोर अपने पल को निरंतर ही
कहीं प्रशंसा तो कहीं फब्तियां हैं
अर्चनाएं टिमटिमाती जुगनुओं सी
कामनाओं की भी तो उपलब्धियां हैं
हौसला से फैसला को फलसफा बना
दार्शनिकों सी उभरतीं सूक्तियाँ हैं
जूझ रहा हवाओं से लौ की तरह
पराजय में ऊर्जा की नियुक्तियां हैं
अपना जीवन रंग रहा बहुरंग सा
रंगहीन हाथ लिए कूंचियाँ है
अर्थ कभी सम्बन्ध तो मिली उपलब्धि
जिंदगी बिखरी इनके दरमियाँ हैं
वही नयन आज भी उदास से हैं
सख्ती बढ़ रही अब कहाँ नर्मियाँ हैं।
धीरेन्द्र सिंह
05.10.2025
16.39
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