अपनी अभिव्यक्तियों की आसक्तियां हैं
कैसे रोकें कि कई नियुक्तियां हैं
हृदय में किसने कहा है रिक्तियां
अनेक लिए आग्रह तख़्तियाँ है
कई विकल्प लुभाने को हैं आतुर
वश में कर लिए उनके दरमियाँ हैं
कहीं तो ठंढी सांसे ढूंढें सरगम
चलन चहक उठा बढ़ी गर्मियां है
कई चिल्ला रहे बढ़ता हुआ शोर है
जो हैं समर्थ उनकी मनमर्जियाँ है
अलाव हथेलिगों में लेकर चल पड़े
पड़नेवाली गजब की जो सर्दियां है।
धीरेन्द्र सिंह
03.10.2025
14.41
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