गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

चाहत

चाहता कौन है पता किसको 
धड़कनें सबकी गुनगुनाती हैं
चेहरे सौम्य शांत प्रदर्शित होते
मन के भीतर चलती आंधी है

एक ठहरे हुए तालाब सा स्थिर
जिंदगी तलहटों में कुनकुनाती है
तट पर हलचल की अभिलाषी
लहरें उमड़ने की तो आदी हैं

स्वभाव विपरीत जीना है यातना
जिंदगी यूँ तो सबकी गाती है
निभाव खुद से खुद करे जो
चाहतें वहीं महकती मदमाती हैं।

धीरेन्द्र सिंह
03.10.2025
07.35

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