मंगलवार, 6 अगस्त 2024

ऐ रचनाकार

 व्यथा लिखे तो हो जाएगी कथा

यथा प्यार के नए भाव तू रचा


टीस पीड़ा की सामाजिक दलन

बकवास है, बता सिहरनी छुवन

सावन में पूजा पर श्रृंगार बता

यथा प्यार के नए भाव तू रचा


व्यक्तिगत जीवन में नई चुनौतियों

फिर क्यों पीड़ा व्यथा हो दर्मियाँ

दर्द भूलें मर्ज को देते हुए धता

यथा प्यार के नए भाव तू रचा


लेखन को लगता क्या लेखन महत्व

रचना में प्रेम, हास्य खोजे निजत्व

ऐ रचनाकार अन्य विधा न जता

यथा प्यार के नए भाव तू जता।


धीरेन्द्र सिंह

07.08.2024

10.31


घाव

 घाव है जख्म है, मूक हो जाएगा

समय एक दवा, सूख खो जाएगा


घाव जख्म जीवन के अटूट अंग

वेदना में सिमटी हर्षदायक तरंग

आज धूमिल कल धवल हो जाएगा

समय एक दवा, सूख खो जाएगा


टोह कर टोक कर कभी गोदकर

उन्मादी करते यूं जीवन का सफर

अयाचित हो वह भी संवर जाएगा

समय एक दवा, सूख खो जाएगा


पल्लवन की चाह में प्रयास उन्नयन

मस्तिष्क कुछ कहे अलग मन उपवन

हुड़दंगई को नया फांस लग जाएगा

समय एक दवा, सूख खो जाएगा।


धीरेन्द्र सिंह

07.08.2024

08.11




संभालिए

 कल की आदर्शवादिता दीखती कहां आज

दलदल में धंसता जा रहा संभालिए समाज


युवाशक्ति संग्रहित विद्यार्थी अनहोनी कर जाएं

नेतृत्व यदि चला गया उसका अंतर्वस्त्र लहराएं

यह कौन सी मर्दानगी पुरुषत्व का है मिजाज

दलदल में धंसता जा रहा संभालिए समाज


अधूरी अपूर्ण विद्यालयीन शिक्षकों का ज्ञान

धर्मावलंबियों का कैसे दबंग ऊंचा है मकान

देखिए छुपी शक्तियां विवेक को रहीं हैं माँज

दलदल में धंसता जा रहा संभालिए समाज


सकारात्मक के विपक्ष उभर रहीं नकारात्मकताएं

हवन करते पुजारी को आसुरी शक्तियां उलझाएं

आत्मिक रणदुदुम्भी से समाज को दे सही साज

दलदल में धंसते जा रहा संभालिए समाज।


धीरेन्द्र सिंह

06.08.2024

21.14



सोमवार, 5 अगस्त 2024

भाग चलें

 मन उलझी सुप्त भावनाओं को नाप चलें

गृहस्थी से जुड़े हुए कुछ दिन भाग चलें


कार्यमुक्त जब रहें मन यह उन्मुक्त रहे

क्या सोचा था क्या हैं किसे व्यक्त करें

सांसारिक दायित्वों में क्यों यह भाव तलें

गृहस्थी से जुड़े हुए कुछ दिन भाग चलें


स्वप्न और यथार्थ बीच जीवन हो चरितार्थ

स्वयं ही कृष्ण बनें आरूढ़ रथ बन पार्थ

अब थका दे रही हैं परिवेश की हलचलें

गृहस्थी से जुड़े हुए कुछ दिन भाग चलें


सुखद आवारगी हर दिल की हैं अभिलाषाएं

अल्पकालिक मनसंगत संयुक्त पतंग उड़ाएं

परिवर्तन सृष्टि गति मन परिवर्तित ले चलें

गृहस्थी से जुड़े हुए कुछ दिन भाग चलें।


धीरेन्द्र सिंह

06.08.2024

07.28




तुमको सोचा

शांत थी मेरी सुबह की सड़क 

बरस ही रहा था झूमता सावन

बहुत दूर से देखा तुम आ रही

यही होता मन मौसम हो, पावन


समुद्री हवा के छाता पर थे थपेड़े

या सोच तुमको चहक उठा सावन

मोबाइल में चाहा करूं कैद तुमको

कहां फिर मिलेगा क्षण मनभावन


सड़क पर था बूंदों का मुक्त नर्तन

सड़क थी खाली तुम्हारा था आगमन

मन की लहर पर बढ़ रहे थे कदम

तुमको सोचा और बहक खिला मन।


धीरेन्द्र सिंह

05.08.2024

15.06




रविवार, 4 अगस्त 2024

इस सावन

 कोई शगुन हो कोई अब करामात हो

इस सावन भींगे मन, ऐसी बरसात हो


बदलियां हंसती-मुस्काती उड़ जाती है 

पवन झकोरों को धर सुगंध भरमाती है 

कभी तो लगे बदली आंगन अकस्मात हो

इस सावन भींगे मन, ऐसी बरसात हो


पौधे घर के झूम रहे लग रहे प्रफुल्लित

औंधे लेटे सोचें बदरिया घेरे मन उल्लसित

मन बौराया सावन में भले ही अपराध हो

इस सावन भींगे मन, ऐसी बरसात हो


साथी थाती बाती बारे उजियारा सावन

भोले भंडारी को हो जलाभिषेक पावन

अभिलाषाओं का कावंड़ आशीष शुभबात हो

इस सावन भींगे मन, ऐसी बरसात हो।


धीरेन्द्र सिंह

04.08.2024

16.47



शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

हिंदी साहित्य

 कल्पनाओं के नभ तले शाब्दिक दुलार

हिंदी साहित्य वर्तमान में सुप्त प्यार


शौर्य और प्यार का है गहरा अटूट नाता

प्यार के बस छींटे लिखें शौर्य रह जाता

सीधे संघर्ष से पीछे हटता दिखें रचनाकार

हिंदी साहित्य वर्तमान में सुप्त प्यार


जिधर पढ़िए प्यार का टूटन, घुटन, मनन

बिना शौर्य प्यार कब निर्मित किया गगन

लगे लेखनी थकी-हारी लिए टूटा हुआ तार

हिंदी साहित्य वर्तमान में सुप्त प्यार


बेबाकी से विगत का वही लेखकीय जुगत

हिंदी है पार्श्व में, भाषा क्रम सक्रिय जगत

परम्परा प्रति मोहित वर्तमान च्युत हुंकार

हिंदी साहित्य वर्तमान में सुप्त प्यार।


धीरेन्द्र सिंह

03.08.2024

10.42