मंगलवार, 12 जून 2012

बरखा (बाल गीत)


बरखा रानी बूँद भर पानी
भर देती प्रकृति में रवानी
कोयल कूके,पत्ते सब गायें
धरा को मानो मिली जवानी

बादल नभ में दौड़े धायें
मेढक गली-गली टर्राएँ
चारों तरफ पानी ही पानी
बरखा बरसे लगे सयानी

पक्षी दुबके देख ठिकाना
हरियाली का गूंजे गाना
बरखा की चलती मनमानी
चिड़िया ढूंढे दाना-पानी

काले-काले घने बादल आये
बिजली चमके और डराए
चले सन-सन हवा सयानी
खिडकी भीतर आये पानी

बरखा है तो है जिंदगानी
मौसम भी लगता गुण ज्ञानी
रिमझिम-रिमझिम का संगीत
बरखा की है यही कहानी.   





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 8 जून 2012

किसी उम्मीद में


किसी उम्मीद में शब् भर रहा, जलता दिया 
भोर की किरणों ने, आकर जो हंगामा किया 
तपिश से भर गया एहसास, एक खुशबू लिए
सुबह की लालिमा ने, ओ़स को जी भर पिया

यह क्यों होता है कैसे, लगे मौसम हो जैसे 
अभी बदली,अभी धूप, लुकाछिपी सी झलकियाँ 
इक आभा को लिए, शब् भर खिले चन्दा 
ना जाने क्यों छुपा देती हैं, हरजाई बदलियाँ 

तड़प संग आती है तरस, अकुलाई प्यासी सी
हसरतें चाहत की कटि पर, उठाये गगरियाँ 
अपने पनघट की तलाश में, जाए गुजर जीवन
हौसले टूटते ना हो भले, चहुँ ओर लाचारियाँ 

कैसा मोबाइल, कैसा स्कायपे, तकनीक का बंजर 
मरीचिका हैं घटाती ,ना तिल भर भी दूरियां 
छिटक चिनगारी सी, धू -धू लगाती आग यह 
मुबारक उनको यह, गजेट जिनकी यह कमजोरियां 

दिल अब भी दिल से मिलता है, तनहाईयों में 
सदा आती है जाती है, मिलती देती बधाइयाँ 
प्यार मोहताज़ ना रहा, कभी किसी सहारे का 
ठुमक उठता है जिस्म, सुन दिलों की शहनाईयां.   


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 28 मई 2012

उम्मीद के जलते दिए


अब मेरी उम्मीद के जलते दिए
बोलकर मुझसे यह चल दिए
और ना प्रतीक्षा अब हो पाएगी
जिंदगी भ्रष्टाचार में समा जायेगी  

हर तरफ अवसर के झमेले हैं
हाँथ कंधे पर अजीब यह रेले हैं
घात और प्रतिघात बात बनाएगी
उम्मीद की लौ जल ना पाएगी

कर्म यदि प्रधान है तो विवश क्यों
भाग्य यदि विधान है तो तमस क्यों
टोलियाँ नयी बोलियां सत्य को झुटलायेंगी
न्याय धर्म परे कर बिगुल नया बजायेंगी

उम्मीद के दिए को यह जरुरी है
सत्य रहे मंद ऐसी क्या मज़बूरी है
बातियों को कर ऊँची लौ को बढ़ाएगी
यह विचार कर हुंकार भीत को ढहाएगी  





भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

कैसा यह संसार है


आज पलटकर जीवन ने, दिया मुझे धिक्कार है
भारत भूमि भयभीत है, कितना भ्रष्टाचार है

जीवन के हर पग पर, पक रहा निरंतर निठुर
सत्कर्मों की सादगी, सजल, अचल, बेकार है

हर विरोध के स्वर को, लें दबोच पल भर में  
निचुड़-निचुड़ कर निचुड़े, कहें यही व्यवहार है

हो विनीत सह लेने की, आदत या मजबूरी है
सहनशक्ति सह लेती सब, ना कोई तकरार है

सारे रिश्ते रिसते खिसकें, गतिशील मझधार है
और किनारे टूटें-फूटें, नावों का व्यापार है

सूखी बाती दीपक थाती, निराधार आकार है
एकजुट हो ना पाएँ, कैसा यह संसार है।     



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

आज तमस में

आज तमस में फिर सुगंधित अमराई है 
सितारों ने जमघट आज फिर लगाई है 
चाँदनी ने हौले से जो छूआ चौखट 
आँगन तब से सिमटी, लजाई है 

झूम रही शाखें, पत्तियाँ करें बातें 
झींगुर झनक उठे, चाँद से दमक उठे 
हवाओं की ठंडक में निशा लिपट धाई है
आँगन के कोनों से गीत दी सुनाई है 

कहने को रात है पर प्रखर संवाद है 
मन बना लेखनी भाव लगे दावात है 
एक ऋचा पूर्णता को पृष्ठ-पृष्ठ तराई है 
अद्भुत अपूर्व असर आस की छजनाई है

आहट भी शोर करे निशा में भोर करे 
आँगन में चाँदनी आज ना शोर करे 
पौ फटने से पूर्व पौ की रहनुमाई है 
सांखल ना बोल उठे रामा दुहाई है।       

भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

शब्द जब भावनाओं में ढलता है

 
शब्द जब भावनाओं में ढलता है
ख़्वाहिशों संग मन पिघलता है
एक मिलन की ओर बढ़ता प्रवाह
ज़िंदगी तो फकत समरसता है

जी भी लेने के हैं जुगत कई
पसीने से ना फूल खिलता है
कर्म और भाग्य की लुकाछिपी है
ज़िंदगी भी लिए कई आतुरता है

शब्द ही तो समय को रंगता है
शब्द में एकरसता तो विषमता है
शब्द के निनाद से गुंजित आसमान
शब्द ही तो एहसासों में खनकता है

हमने जो पाया नहीं कि भाया है
वक़्त भी ज़िंदगी संग ढलता है
सतत संघर्षरत जीवन लय संग 
शब्द संग जीवन सतत सँवरता है।   


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

जीत अपूर्व

 
फिर हवाओं ने छुआ नवपल्लवित पंखुड़ियाँ
नव सुगंध ने सुरभि शृंखला संव्यवहार किया
अभिनव रंग में हुआ प्रतिबिम्बित प्यार
फिर चाहत ने राहों से प्रीतजनक तकरार किया

लगन लगी की हो रही चारों ओर बतकही
प्रीत की रीत यह बेढंगी सबने तो स्वीकार किया
अलख जगी तो लगी समाधि समर्पण की
दिल ने जुड़कर पल-पल को जीवन का त्योहार किया

दुनिया की अनदेखी करने का न मिला संस्कार
दूरी रख कर चाहत ने जीने का इकरार किया
वैसे भी सब मिलता नहीं जो चाहे दिल
दर्द-ए-दिल की चिंगारी में हवन बारम्बार हुआ

आखिर वक़्त संवारा आया हट गया साया
दुनिया ने इस श्रुति का आखिर पुकार किया
सच्चाई को जीत अपूर्व मिलती है ज़रूर
मिलती है मंज़िल अगर कोई ना गुमराह किया।


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.