दुनिया भी है सहमत हम ही ना कहें
बिना विवाह बिना साथ रहे कहकहे
भावनाओं का अबाधित आदान-प्रदान
समझदार ही मिलें नहीं हैं यहां नादान
नवजीवन नवसुविधाएँ तपिश क्यों सहे
बिन विवाह बिन साथ रहे कहकहे
जीवन ऑनलाइन है मोबाइल धड़कने
जीवंत जो है जिए क्यों भला अनमने
प्रचंड वेगों से अनुकूल चुनकर बहे
बिन विवाह बिन साथ रहे कहकहे
आत्मिक उत्थान का यह युग बिहान
हर समस्या का है ऑनलाइन निदान
जिनदगी जो जीता पूछता न फलसफे
बिन विवाह बिन साथ रहे कहकहे।
धीरेन्द्र सिंह
15.09.2025
05.02
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