पुस्तक प्रकाशन की आवश्यकता क्या है
प्रौद्योगिकी जब स्पष्ट कार्य करने लगी है
कश्मीर और बंगाल को पढ़ पाते भी कितना
विवेक अग्निहोत्री प्रतिभा जो कहने लगी है
गहन शोध कर सत्य कथ्य को खंगालकर
पटकथा, अभिनय, संवाद लेंस जड़ी है
निर्देशन से अभिनय सहज होकर जागृत
पुस्तकों की बातें स्पष्ट अब स्क्रीन चढ़ी हैं
हिंदी के श्रेष्ठ रचनाकार हैं विवेक अग्निहोत्री
दग्ध कोयला भी हथेली पर ठुमकने लगी है
निर्भीकता से इतिहास सजीव करें प्रस्तुत
पुस्तकें अभिव्यक्तियों में पिछड़ने लगी है।
धीरेन्द्र सिंह
10.09.2025
17.56
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें