गुरुवार, 28 अगस्त 2025

अधर आंगन

 अधर के आंगन में अनखिले कई शब्द

असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध


नयन की गगरी से भाव तरल कभी गरल

अगन की चिंगारियां हवा संग रही बहल

अधर आंगन में चाहत जैसे छुईमुई निबद्ध

असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध


चल पड़े भाव राह उलझा जो संग बहेलिया

खिल पड़े घाव आह सुलझा दी तंग डोरियां

कुछ भ्रम भी उभरते हैं जैसे अलगनी प्रारब्ध

असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध


अधर गुप्त कंपन समंजन में पाए भंजन

आंगन हवा बहे प्रयास किमनरूप प्रबंधन

आत्मिक ऊर्जा लहक लपक छुई आबद्ध

असर की चाहत में सिलसिले कई स्तब्ध।


धीरेन्द्र सिंह

28.08.2025

18.3


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