दौर के दौड़ में हैं थक रहे पाँव
गौर से तौर देखे कहाँ तेरा गांव
एक जगत देखूं है ज्ञानी अभिमानी
एक जगत निर्मल निर्मोही जग जानी
जिससे भी पता पूछूं ना जानें ठाँव
गौर से तौर देखे कहाँ तेरा गांव
वह जो पुकार हृदय में रही गूँज
उभरते भाव रहे कामना को पूज
और कितना दौड़ना कहां है छांव
गौर से तौर देखे कहां तेरा गांव
पथ भी अनेक विभिन्न रंग के राही
हर पथ गूंजता करता तेरी वाहवाही
ओ चपल तू छलक ललक दे दांय
गौर से तौर देखे कहां तेरा गांव।
धीरेन्द्र सिंह
25.08.2025
21.00
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