अस्वाभिक परिवेश में बुलाया ना करो
आध्यात्मिक हो यह दिखावा ना करो
माना कि स्वयं को हो करते अभिव्यक्त
पर यह तो मानो हर आत्मा यहां है भक्त
धर्म के भाव छांव संग गहराया ना करो
आध्यात्मिक हो यह दिखावा ना करो
आसक्त है मन तुमसे जहां गहरी वादियां
उन्मुक्त तपन में सघन विचरती किलकरियाँ
अनुगूंज अपने मन का छुपाया ना करो
आध्यात्मिक हो यह दिखावा ना करो
यह तन सर्वप्रथम है आराधना का स्थल
तन जीर्ण-शीर्ण ना हो करें प्रयास प्रतिपल
आसक्ति-भक्ति-मुक्ति जतलाया ना करो
आध्यात्मिक हो यह दिखावा ना करो
चिकने चेहरे निर्मल मुस्कान लिए प्रेमगान
उल्लसित उन्मुक्त प्यार ही में किए ध्यान
यही आध्यात्मिक यह झुठलाया ना करो
आध्यात्मिक हो यह दिखावा ना करो।
धीरेन्द्र सिंह
24.08.2025
08.42
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