भूल जाइए तन मात्र रहे जागृत मन
प्रतिध्वनि तब उभरेगी छन छनाछन
काया की माया में है धूप कहीं छाया
मन से जो जीता वह जग जीत पाया
आत्मचेतना है सुरभित सुंदर अभिगम
प्रतिध्वनि तब उभरेगी छन छनाछन
युक्तियों से रिक्तियों को कौन भरपाया
आसक्तियों की भित्ति पर चित्रित मोहमाया
थम जाएं वहीं जहां अटके मुक्त मन
प्रतिध्वनि तब उभरेगी छन छनाछन
पट्टे में बंधे श्वान से लेकर हैं चलते मन
बँध जाना जीवन में न कहे धरती गगन
खोलकर यह बंधन अपने में हों मगन
प्रतिध्वनि तब उभरेगी छन छनाछन।
धीरेन्द्र सिंह
22.08.2025
07.48
सुंदर सृजन
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