बुधवार, 13 अगस्त 2025

क्रंदन

 सौंदर्य की चंचलता पर संस्कारी बंधन

इतना ना जकड़िए मन में होता क्रंदन


रूपवती हैं, निगाहें मान लेती हैं गुणवती

धुनमति हैं अदाएं जान लेती हैं द्रुतगति

सौम्य, शांत, संयत, शीतल सुगंधित चंदन

इतना न जकड़िए मन में होता क्रंदन


अनदेखा कर भूल जाना भला कहां संभव

आपके सौंदर्य से प्रणय सदियों से पराभव

आसक्ति मुक्ति ना चाहे बस सौंदर्य अभिनंदन

इतना न जकड़िए मन में होता क्रंदन


भावनाओं की रिक्तियां चाहे प्यार युक्तियाँ

सौंदर्य परख दृष्टि की नित नव आसक्तियां

विनयपूर्ण सम्मान में गरिमा का हो वंदन

इतना न जकड़िए मन में होता क्रंदन।


धीरेन्द्र सिंह

14.08.2025

09.03



मंगलवार, 12 अगस्त 2025

यूट्यूब पाती

 दूसरों की कविताएं चुन जब तुम थी गाती

कहो क्या था, संदेसा या प्रेम यूट्यूब पाती


मेरे भी गीत में की थी तुम कई परिवर्तन

सुर, लय में बांध ली भाव का था आवर्तन

आज भी हूँ सुनता जिंदगी जो पीट जाती

कहो क्या था, संदेसा या प्रेम यूट्यूब पाती


सबकी तो हैं होती अपनी लक्ष्मण रेखा

जिसने उसको फांदा जीवन विभिन्न देखा

ऐसी रेखाएं तोड़ती बन गयी प्यार उन्मादी

कहो क्या था, संदेसा या प्रेम यूट्यूब पाती


प्रणय को कहा बयार तुम समझ पाई सस्ता

व्यक्तित्व मिलन दुर्लभ समझी बिखरा बस्ता

चुगते गई अविवेकी कागजी नाव भाव बहाती

कहो क्या था, संदेसा या प्रेम यूट्यूब पाती


व्हाट्सएप्प चैट वीडियो कॉलिंग अन्य हैं रास्ते

हर एप्प पर थी दिखती थी तुम दौड़ते हांफते

क्या चाह थी क्या राह थी विभिन्न तथ्य अपनाती

कहो क्या था, संदेसा या प्रेम यूट्यूब पाती।


धीरेन्द्र सिंह

13.08.2025

09.30


जुगलबंदी

 लय में बंधी रहोगी धुन में बंधी रहोगी

संगीत जीवन का दिया तुम्हारा सानिध्य

गीत रचने लगे भाव रंग-रंग के खिलें 

होता है ऐसा ही मन का मन से आतिथ्य



लय में बंधी रहोगी धुन में बंधी रहोगी

संगीत जीवन का दिया तुम्हारा सानिध्य

गीत रचने लगे भाव रंग-रंग के खिलें 

होता है ऐसा ही मन का मन से आतिथ्य


कपोलों में हंसती थी चुराती जो अंखिया

खिल मुझसे लिपट जाता था वह साहित्य

दिल की धड़कनों पर दौड़ता बोलता मन

क्या-क्या न रच गईं तुम प्यार का आदित्य


भावनाओं को शब्दों की चूनर थी चढ़ाती

यूट्यूब में गीतों का था अभिनव दृश्यव्य

यत्र-तत्र प्रकाशित होती थी गुंजन तुम्हारी

कई सुरों का बखूबी बतला थी महत्व


वह अपनी जुगलबंदी थी छाप थी अलग

किस कदर परिवेश में था तुम्हारा आधिपत्य

प्रसिद्धि न संभाल सकी चापलूस पैठ गए

हर डगर समावेश में गा पुकारा किए अनित्य।


धीरेन्द्र सिंह

12.08.2025

17.23




सोमवार, 11 अगस्त 2025

बालकृष्ण

 भोला चित्ताकर्षक मनमोहक रूप

मुग्धित दृष्टि लिए चुम्बकीय अनूप

सृष्टि सहर्ष उत्कर्ष की है ललक लिए

चांदनी लिपट गयी देख अद्भुत धूप


मात-पिता शिशु देखें भाव के झकोरे

आत्मतृप्ति ले आसक्ति आयो सपूत

एक ऊर्जा सकारात्मक जैसे ब्रह्मचेतना

भाग्य खिला जीवन मिला जैसे शहतूत


नयन गति पालना गति सुख सम्मति

माँ अनुग्रहित कोख प्रभाव जो भभूत

पित्र चित्र भाव के पूरित शिशु प्रभाव

उन्नयन बहुरंगी गगन आभामंडल सूत


कान्हा को कहना एक दिव्य अनुभूति

कामनाएं सविनय करें कृष्ण तो अकूत

बालरूप अतिदिव्य रूप पूर्ण कौन देखे

अर्चना संग सर्जना विनीत भाव से आहूत।


धीरेन्द्र सिंह

11.08.2025

20.26

रविवार, 10 अगस्त 2025

जनकल्याण

 सब कुछ बदल देंगे, कथ्य डंटा है

यह राय है समय का, सत्य बंटा है

एक हौसला से ही हो पाता फैसला

कुछ बात है कि लगे हौसला छंटा है


डैने पसारकर उड़ने की समय मांग

छैने में बैठकर सिर्फ बातों की छटा है

संस्कृतियां ले रही हैं बेचैन करवटें

कह रही सभ्यता कि अब क्या घटा है


कहीं व्योम है सिंदूरी कहीं श्यामलता

कहीं उर्वरक धरा कहीं बंजर अड़ा है

प्रगति की दौड़ में द्रुत गतिमान दिशाएं

लगने लगा अपरिचित जो संयुक्त धड़ा है


भाषा के नाम पर अभिव्यक्तियों के बाड़

धर्म के नाम पर मानव सत्कर्म मथा है

अब कर्म ही आधार, सर्व सुखदाई रहें

जनकल्याण विश्व का हो चाह दृढ़ खड़ा है।


धीरेन्द्र सिंह

10.08.2025

18.46



शनिवार, 9 अगस्त 2025

सचेतक हुंकार

 उत्सव है, खुशियां हैं, वस्त्रों की झंकार है

भीड़ सुबह दुकानों पर उड़ रहा प्यार है


यह भी एक चर्चा है त्यौहार बस पर्चा है

रक्षाबंधन से प्रारंभ पर्व संबंधों का दर्जा है

अजीब सुगबुगाहटों संग सजग संसार है

भीड़ सुबह दुकानों पर उड़ रहा प्यार है


विश्वास का यह धागा पारंपरिक बंधन अटूट

एक सुरक्षा अभेद्य शौर्य, कीर्ति, चाह सम्पुट

इसपर भी आक्रमण सब प्रयास बेकार हैं

भीड़ सुबह दुकानों पर उड़ रहा प्यार है


अबकी राखी बंधी पहले से अधिक जंची

धूल-धक्कड़ न बसे दुकानों ने नीति रची

त्यौहारों में भी अब सचेतक हुंकार है

भीड़ सुबह दुकानों पर उड़ रहा प्यार है।


धीरेन्द्र सिंह

09.08.2025

15.09



गुरुवार, 7 अगस्त 2025

संस्कार

 जैसा देखा जीवन वैसा निर्मित आकार

आदर्श, नैतिकता संग बनता है संस्कार


कुछ परंपरा से मिली जीवन की आदत

कुछ परिवेश से भी बढ़ जाती है लागत

कुछ शिक्षा, दीक्षा का ले बढ़ते हैं आधार

आदर्श, नैतिकता संग बनता है संस्कार


अधिकांश होते अपने धर्म की किलकारी

विरले ही करते परिस्थिति तर्क से यारी

कहीं देह निर्वाण कहीं देह लज्जा व्यवहार

आदर्श, नैतिकता संग बनता है संस्कार


वर्तमान में द्रुत परिवर्तन से जीते मुहं मोड़

देखा, जीया है नहीं पढ़-सुन कहें इसे तोड़

अपनी-अपनी लक्ष्मण रेखा में ही झंकार

आदर्श, नैतिकता संग बनता है संस्कार


धन, संपदा, वैभव, ख्याति के जो अनुयायी

ऐसे यथार्थ समझे बिना जो पाया पगुरायी

बौद्धिक होना गहन साधना तर्क हवन आधार

आदर्श, नैतिकता संग बनता है संस्कार।


धीरेन्द्र सिंह

08.08.2025

12.12