सौंदर्य की चंचलता पर संस्कारी बंधन
इतना ना जकड़िए मन में होता क्रंदन
रूपवती हैं, निगाहें मान लेती हैं गुणवती
धुनमति हैं अदाएं जान लेती हैं द्रुतगति
सौम्य, शांत, संयत, शीतल सुगंधित चंदन
इतना न जकड़िए मन में होता क्रंदन
अनदेखा कर भूल जाना भला कहां संभव
आपके सौंदर्य से प्रणय सदियों से पराभव
आसक्ति मुक्ति ना चाहे बस सौंदर्य अभिनंदन
इतना न जकड़िए मन में होता क्रंदन
भावनाओं की रिक्तियां चाहे प्यार युक्तियाँ
सौंदर्य परख दृष्टि की नित नव आसक्तियां
विनयपूर्ण सम्मान में गरिमा का हो वंदन
इतना न जकड़िए मन में होता क्रंदन।
धीरेन्द्र सिंह
14.08.2025
09.03
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