देह दलन
कैसा चलन
व्यक्ति श्रेष्ठ
आवश्यकता ज्येष्ठ
विवशता लगन
कैसा चलन
प्रदर्शन परिपुष्ट
प्रज्ञा सुप्त
वर्चस्वता सघन
कैसा चलन
शौर्य समाप्त
चाटुकारिता व्याप्त
अवसरवादिता मनन
कैसा चलन
देह परिपूर्णता
स्नेह धूर्तता
प्यार गबन
कैसा चलन।
धीरेन्द्र सिंह
देह दलन
कैसा चलन
व्यक्ति श्रेष्ठ
आवश्यकता ज्येष्ठ
विवशता लगन
कैसा चलन
प्रदर्शन परिपुष्ट
प्रज्ञा सुप्त
वर्चस्वता सघन
कैसा चलन
शौर्य समाप्त
चाटुकारिता व्याप्त
अवसरवादिता मनन
कैसा चलन
देह परिपूर्णता
स्नेह धूर्तता
प्यार गबन
कैसा चलन।
धीरेन्द्र सिंह
तिरस्कृत प्यार
जानबूझकर हो
या हो अनजाने में,
यादें उठती
भाप सरीखी उड़ती
घर हो या मयखाने में;
सुंदर हो बाहुपाश
हो समर्पित विश्वास
यादें मिले तराने में,
कौन बहेलिया
बहलाए सांस
बदले निजी जमाने में;
अनुगामी यादें
टूटे ना वह नाते
त्यजन गरमाने में,
वशीकरण वशीभूत
भावनाओं का द्युत
जीवन को भरमाने में;
दूरी कैसी
लिप्सा मजबूरी जैसी
चाहतें हर जाने में,
जानेवाले जाएं कहां
यादों से रहे नहा
युग्मित गुसलखाने में।
धीरेन्द्र सिंह
अमौ हाजी
ज़िंदगी से बाजी
सत्तर वर्ष न नहाया
फिर भी मारी बाजी
अमौ हाजी
कैसे जिया कैसे पिया
लोग न थे राजी
रहा भय से लिपटा
फिर भी मारी बाजी
अमौ हाजी
अंग्रेजी का कठिन शब्द
अब्लूफोटोबिया हिंदी निःशब्द
हिंदी शब्द खाए कलाबाजी
फिर भी मारी बाजी
अमौ हाजी
हिंदी में तुमको लिखा
विज्ञान को गए सिखा
समझ न पाया धुनबाजी
फिर भी मारी बाजी।
धीरेन्द्र सिंह
(अमौ हाजी विश्व का सबसे गंदा व्यक्ति जो 70 वर्ष तक नहीं नहाया क्योंकि वह नहाने से डरता था। काफी दबाव पर जब वह नहाया तो बीमार पड़ गया और 92 वर्ष में मर गया)
विकल्प
विकल्प होना
संभव है संकल्प में
संकल्प होना
संभव कहां अल्प में,
स्थिर मन होता है संकल्पित
या विकल्पित
अपने संस्कार अनुसार
मन का खोले द्वार,
विकल्प तलाशता है
बुनता ताना-बाना
परिचित से हो अपरिचित
अनजाने को कहे पहचाना,
संकल्प और विकल्प
जीवन के दो धार
संकल्प से हो उन्नयन
विकल्प ध्वनि बस "यार"।
धीरेन्द्र सिंह
कौओं, कबूतरों, गिद्धों के
चखे फल को
अर्चना में सम्मिलित करना
एक आक्रमण का
होता है समर्थन,
श्रद्धा चाहती है
पूर्णता संग निर्मलता,
चोंच धंसे फल
सिर्फ जूठे ही नहीं होते
बल्कि
किए होते हैं संग्रहित
चोंच के प्रहारों की अनुभूति
समेटे मन के डैने में,
आस्थाएं
नहीं टिकती
जूठन व्यवहार पर
क्या करे पुजारी
मंदिर के द्वार पर।
धीरेन्द्र सिंह
हवन कुंड जलाकर
उसका रचयिता
प्रत्येक आहुति में
किए जा रहा है
अर्पित अपने गुनाह
अर्जित करता शक्ति
ईश्वर से
हवन कुंड का रचयिता
हो सम्माननीय
हमेशा आवश्यक नहीं,
धर्म की आड़ में
शिकार की ताड़
और नए शिकार से प्यार
भीतर से,
हवन कुंड का रचयिता
करता है ब्लॉक
जब पाता है नया शिकार
एक चाहत की प्यास
कहता है
"मेरा ही बनाया हवन कुंड'
आहुति दे
भोलापन और मासूमियत
भीतर बदनीयत
स्वार्थ की हुंकार
प्यासे तन-मन की झंकार
एक पकड़े दूजा छोड़े
नातों से नव नाता जोड़े
आदमी दे।
धीरेन्द्र सिंह