रविवार, 13 नवंबर 2022

यादें

तिरस्कृत प्यार

जानबूझकर हो

या हो अनजाने में,

यादें उठती

भाप सरीखी उड़ती

घर हो या मयखाने में;


सुंदर हो बाहुपाश

हो समर्पित विश्वास

यादें मिले तराने में,

कौन बहेलिया 

बहलाए सांस

बदले निजी जमाने में;


अनुगामी यादें

टूटे ना वह नाते

त्यजन गरमाने में,

वशीकरण वशीभूत

भावनाओं का द्युत

जीवन को भरमाने में;


दूरी कैसी

लिप्सा मजबूरी जैसी

चाहतें हर जाने में,

जानेवाले जाएं कहां

यादों से रहे नहा

युग्मित गुसलखाने में।


धीरेन्द्र सिंह


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