मंगलवार, 18 जनवरी 2022

दालान

 अहसान के दालान में

गौरैया का खोता है,

जेठ की धूप खिली

मन सावन का गोता है;


खपरैले छत छाई लतिकाएं

पदचिन्ह दालान भरमाएं

दृष्टि कहे बड़ा वह छोटा है

सूना पड़ा गौरैया खोता है;


फिर वही पाद त्राण अव्यवस्थित

कौन है व्यक्तित्व फिर उपस्थित

मन के हल से नांध तर्क जोता है

झूम रहा क्यों आज खोता है।

धीरेन्द्र सिंह

गुरुवार, 13 जनवरी 2022

मकर संक्रांति

 धर्म जब कर्म के करीब हो

जीवन की मिटे सब भ्रांति

ऑनलाइन उत्सव मनाएं यूं

मन से हो मन मकर सक्रांति


लोहड़ी भी संग लिए पोंगल

तीन अलग नाम लिए विश्रांति

फसलों से आसमान गूंज उठे

मन से हो मन मकर संक्रांति


शीत ढले ऊष्मा बढ़े ले उल्लास

ऐसी ही होती सब धार्मिक क्रांति

आपकी उमंग में उड़ती पतंग हो

मन से हो मन मकर संक्रांति।

धीरेन्द्र सिंह