धर्म जब कर्म के करीब हो
जीवन की मिटे सब भ्रांति
ऑनलाइन उत्सव मनाएं यूं
मन से हो मन मकर सक्रांति
लोहड़ी भी संग लिए पोंगल
तीन अलग नाम लिए विश्रांति
फसलों से आसमान गूंज उठे
मन से हो मन मकर संक्रांति
शीत ढले ऊष्मा बढ़े ले उल्लास
ऐसी ही होती सब धार्मिक क्रांति
आपकी उमंग में उड़ती पतंग हो
मन से हो मन मकर संक्रांति।
धीरेन्द्र सिंह
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