देखे जब दूसरे ग्रह, हमारी दुनिया सारी
जहाँ भी देखे दिखलाई दे, पुलकित सी नारी
यहाँ जन्म, तो वहां शिक्षा, दिखे तरक्की
कैसे रच लेती है नारी, इतनी सारी क्यारी
अक्सर छुप करती है, मन से अपनी बातें
नयनों में वात्सल्य सदा, लगे दुनिया प्यारी
इल्म, इनायत, इकरार, ना कुछ से इनकार
सर्वगुण संपन्न है यह, जग में सबसे न्यारी
भावुकता संग लिए समर्पण, मन हो जैसे दर्पण
बंधन को कभी ना भूले, ले जिम्मेदारी सारी
चौका-चूल्हा में चुन देते, स्वार्थ के रखवाले
वरना वल्गाएँ हांथों में ले, वक्त पर करें सवारी
यह तो निर्मल जलधारा हैं, बहने दें ना रोकें
शिक्षा, सोहबत, शौर्य, शराफत,सबरंगी संसारी
घर, समाज, विश्व में, जिसके बिना सब मिथ्य
कष्ट, दर्द, को बना हमदर्द, अनुषंगी है नारी.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
आंचल में प्यार आंखों में पानी नारी तेरी यही कहानी।
जवाब देंहटाएंवाह! नारी के व्यक्तित्व का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंnaari ka satwik swaroop varnit kiya hai ... bahut badhiyaa
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही सुन्दर शब्द ।
जवाब देंहटाएंएक नारी कों आपने बखूबी समझा , इसके लिए समस्त नारी समुदाय की तरफ से आपको आभार ।
जवाब देंहटाएंरचना बहुत ही उम्दा है ।
सुन्दर बात कही आपने....
जवाब देंहटाएंनारी....बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! शुभकामनायें एवं साधुवाद !
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