गुरुवार, 31 जुलाई 2025

न्यायालय

 तत्व छूट जाता सत्य रहता लड़खड़ाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता


सत्ता और शक्ति में संभव है असंतुलन

नागरिकता ज्वलंत न तो संभव है दलन

आत्मा विचलित को विधि बांध न पाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता


आदर्श, सिद्धांत, नैतिकता लगे तकिया

यह दुखद ऐसी समाज में चर्चित बतियां

मानवता के मूल्यों में कांध न लग पाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता


गरजकर बरसकर दमभर सबका है सफर

राह अपनी चाह अपनी अन्य कुछ बेकदर

कृत्रिम जीवन संस्कृति को दीमक चाट छाता

न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता।


धीरेन्द्र सिंह

31.07.2025

19.25



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें