तत्व छूट जाता सत्य रहता लड़खड़ाता
न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता
सत्ता और शक्ति में संभव है असंतुलन
नागरिकता ज्वलंत न तो संभव है दलन
आत्मा विचलित को विधि बांध न पाता
न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता
आदर्श, सिद्धांत, नैतिकता लगे तकिया
यह दुखद ऐसी समाज में चर्चित बतियां
मानवता के मूल्यों में कांध न लग पाता
न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता
गरजकर बरसकर दमभर सबका है सफर
राह अपनी चाह अपनी अन्य कुछ बेकदर
कृत्रिम जीवन संस्कृति को दीमक चाट छाता
न्यायालय कथ्य उबाल तथ्य न ले आता।
धीरेन्द्र सिंह
31.07.2025
19.25
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें