हवा के झोंके से आ गयी चिपक
भूंरी सी कम नमी वाली वह पत्ती
चिहुंक मन जा जुड़ा वहीं पर फिर
जहां जलती ही रहती भाव अगरबत्ती
थोड़ी कोमल थोड़ी खुरदुरी सी लगे
उम्र भी हो गयी देह की अपनी सूक्ति
हल्की खड़खड़ाहट से बोलना चाहे
मुझको छूते चिकोटी काटते भूंरी पत्ती
खयाल भी अकड़ जाते हल्के से जैसे
हवा संग दौड़ती-भागती यह भूंरी पत्ती
कभी लगता वही कोमलता सिहरन वही
अब सब ठीक लगे भटका दी भूंरी पत्ती
अचानक उड़ गई झोंका हवा का था तेज
रोकना, पकड़ना चाहा हवा से करते आपत्ति
कितनी गहराई से हम मिले वर्षों बाद जी
कहीं खोती ने दिल की हो गयी संपत्ति।
धीरेन्द्र सिंह
30.07.2025
08.55
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