रविवार, 13 जुलाई 2025

अज्ञानी

 क्या सत्य लूट लेगा क्या धर्म की गहनता

यह मन बड़ा है छलिया मानव की सघनता

कर्म प्रचुर दूषित विचारों में भी नहीं दृढ़ता

व्यक्तित्व उलझा सा रह-रहकर है उफनता


बस स्वार्थ की ही दृष्टि अपनी जैसी हो सृष्टि

सभ्य, संस्कारी समझ खुद अन्य पर बरसता

ऐसे कई हैं लोग अभी सामान्य, नामी-गिरामी

न सोच का आधार जिसने सींचा वैसे बरसता


सब कुछ बदल रहा पर ऐसे लोग नहीं बदलते

जहां भी बैठे हैं वह परिवेश घुटन से कहरता

नई सोचवाला कर्म संग जुड़ा है अपनी माटी से

एक दृष्टांत नया हो अपने सत्य लिए फहरता।


धीरेन्द्र सिंह

14.07.2025

09.50


प्यार न तर्क

 प्यार करने को जी चाहे पर एज फर्क

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


बिन रिश्ते का यह बन जाता है रिश्ता

बन जाता रिश्ता तो प्यार हैं सिंकता

कौन भला है सोचता प्यार भी खुदगर्ज

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


बातें अगर सुहाती हों भाव भरे उत्कर्ष

चैट करते समय शब्द-शब्द खिलें सहर्ष

फिर चाहत में स्थान कहां पा जाता कुतर्क

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


कविता थी मेरी या थे मेरे काव्य विचार

मनोयोग से किया उन्होंने भाव सभी स्वीकार

कब कोई भा जाए कैसे बिना किसी शर्त

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2025

19.38





शनिवार, 12 जुलाई 2025

पहली बारिश

 जब पहली बारिश की बूंद मेरे चेहरे से टकराई

हवा महक दौड़ी सरपट भर अंग सुगंध अमराई

पहली छुवन तुम्हारी चमकी शरमाती सी घबड़ाई

बारिश प्यार का मौसम लगता नयन भरी चतुराई


चेहरा चिहुंक उठा यह कैसा गज़ब छुवन आभास

बूंद ठहर पल सरकी मृदु कोमल बोली ना दो दुहाई

सावन का यह अल्लहड़पन है पहली झमक बरसात

बदली डोली धरती बोली लो खिली प्रकृति अंगड़ाई


जब गहरे भावों से नयन तके मेरे चेहरे को अपलक

तब लगे बूंद टप्प गाल गूंजकर रोम-रोम सहलाई

तुम मिलती हो छा जाती घटा भाव बदलियां घनेरी

बारिश तो बस एक प्रतीक है तो मेरी सावनी दुहाई।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2025

08.57



लोकप्रियता

 यह लोकप्रियता यह साख यह प्रसिद्धियाँ

यह सक्रियता यह लाभ यह युक्तियाँ

कर्म का है पक्ष जिसको नकारना कठिन

व्योम में गुजर रही हैं असंख्य सूक्तियाँ


सद्प्रयास कुप्रयास दोनों की ही दौड़ बड़ी

व्यक्ति है दबा उलझा लिए मन नियुक्तियां

एक पहचान विधान बढ़ाए निज गुमान

शक्ति के मुक्ति की संयुक्त मन रिक्तियां


लक्ष्य की गंभीरता जड़ों की ओर खींचे

प्रशस्ति की गूंज बीच ख्याति अठखेलियाँ

कर्म है भ्रमित मूल ऊर्जा लगे शमित

धर्म के अध्याय में प्रचलित लोकोक्तियाँ


ए आई ऊपर से समेट रहा सृष्टि सजग

प्रौद्योगिकी प्रगति से चढ़ी व्यक्ति भृकुटियां

बुलबुले की ख्याति खातिर के प्रयत्नशील

प्रतिभा खंडित हो यूं बंटी बन टुकड़ियाँ।


धीरेन्द्र सिंह

12.07.2025

13.47




शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

नैतिकता

 आदर्श

अंतर्मन का संग्रहित

सत्य

सिद्धांत

समय के ठोकरों से

निर्मित अनुभव

नैतिकता

सामाजिक संचालन का

अधिसंख्य सीकृति रूप,

ऐसे में डोलता है, कांपता है

उछलता है दिल

और चाहता है

अपने सोच अनुरूप

आदर्श, सिद्धांत, नैतिकता;


ऐसे लोग जो नहीं समझ पाते

साहित्य की विभिन्न विधाएं

जो नहीं कर पाते विश्लेषण

देह-आत्मा-परमात्मा और

लोक-परलोक का

उन्हें अश्लील लगती है रचनाएं

आए वह मौन रहते हैं

खिलखिलाती रचना

साहित्य तुरही संग 

रहती है मुस्कराती,


आत्मा और परमात्मा की

बात करनेवाले लोग

देह को समझते हैं हेय,

आश्चर्य होता है कि

अनेक समूह छोड़

साहित्य मंथन

नैतिकता का पाठ

पढ़ा रहे हैं,


साहित्य ऐसे समूह में

घुट रहा है,

बौद्धिक लेखन अनजानेपन,

अज्ञानता 

साहित्यिक संभावना को

लूट रहा हैं।


धीरेन्द्र सिंह

11.07.2025

20.07



मंगलवार, 8 जुलाई 2025

न जाने कब

 सोशल मीडिया

खत्म करे दूरियां

न जाने कब

परिचित लगने लगता है

एक अनजाना नाम

एक अनचीन्हा चेहरा

और बन जाता है

प्यार का धाम,


शब्द लेखन से

होती अभिव्यक्तियाँ

करती हैं

नव अनुभूति नियुक्तियां

मन होने लगता है

जागृत और सचेत,

होता है अंकुरित प्यार

दूरियों के मध्य,

रहते दोनों सभ्य,


बदलते परिवेश में

बदल रही सभ्यता

कुछ संस्कार

उत्सवी त्यौहार

और

मानवीय प्यार

ढंपी-छुपी चौखट

खुला हुआ द्वार

बदलने को आमादा

दीवारों की टूटन8

और

टूटता मन।


धीरेन्द्र सिंह

11.07.20२5

06.21





जनक

 तुम भावनाओं की जनक हो

तुम कविताओं की सनक हो

तुम व्याप्त सभी रचनाकारों में

तुम लिए साहित्य की खनक हो


आप संबोधन लिख न सका, चाहा

"तुम में" अपनापन की दमक हो

याद बहुत आ रही, झकोरा बन

तुम रचना पल्लवन की महक हो


जो रच पाता, सज पाता वह तुम

जग गाता वह गीत ललक हो

रचनाकार की तुम्हीं कल्पनाशक्ति

शब्दों की गुंजित मनमीत चहक हो।


धीरेन्द्र सिंह

09.07.2025

09.29