बौद्धिकता में निहित नव हर्षिता
मनुष्यता का मुकुट है पारदर्शिता
बुद्धिमत्ता से संबंधों में भी घूंघट
विरले ही खुलकर जीते अर्पिता
स्पष्ट प्रदर्शन स्वयं की निमित्तता
क्लिष्ट जीवन क्यों क्या रिक्तिता
साफ-साफ कह दे वह ना मुहंफट
जितना स्वयं को खोलें उन्मुक्तता
दुनियादारी में पर्देदारी है कायरता
जैसा हैं वैसा दिखाएं स्व दग्धता
क्या मिलेगा जीवन में लेते करवट
चतुराई स्व से गैरों को न फर्क पड़ता
धर्म के बड़बोले धर्म की आतुरता
कर्म का दिखावा सोच में निठुरता
बहुसंख्यक घूंघट में बेसुरे खटपट
जैसा हो वैसा कहो स्व में मधुरता।
धीरेन्द्र सिंह
26.07.2025
15.20
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