सुनो प्रयास तज्ञ शब्द संचयन
समेट पाओ क्या स्मिति नयन
उठाए भार अभिव्यक्ति गमन
रंग पाओगे मुझ जैसे प्रीत चमन
मेरा सर्वस्व ही मेरा निजत्व है
शब्द कहो कहां तुम्हारा है वतन
मेरी अनुभूतियां परिकल्पनाएं
शब्द कर पाओगे हूबहू जतन
आत्मा मेरी जुड़े आत्मा उसकी
धरा की कोशिशें ठगा सा गगन
बहुत बौने, बहुत अधूरे हो शब्द
मेरी आत्मा मेरी आराधना, नमन।
धीरेन्द्र सिंह
06.04.2022
16.08
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