गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

विलगाव

 जब मन

छोड़ने लगता है

किसी को,

दर्द मिलता है

तब

हर हंसी को;


भागती जाती है

जिंदगी

होते जाते हैं 

कद छोटे,

जीवन गति स्वाभाविक

सागर भरे लोटे;


नहीं आती याद

खिलखिलाहट, बतकही,

कौन बोले पगली

झुंझलाहट झगड़े की बही ;

नहीं कहता मन

पूछें योजना अगली;


हर धार को अधिकार

मन अपने बहे,

चाहे संग नदी चले

या किनारे को गहे,

मोड़ एक मुड़ना

फिर क्या सुने क्या कहे।


धीरेन्द्र सिंह

07.04.2022

13.34

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