मुझे मजबूर करती है मोहब्बत तुम्हारी
कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी
प्रणय के पल्लवन पर है तुम्हारी चंचलता
हृदय तुमको सराहा है लिए व्याकुलता
हृदय कहता है तुम ही हो नमन दुलारी
कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी
मुझे मालूम हैं समवेत सामाजिक चपलता
मेरी आत्मा करे प्रसारित निज धवलता
मोहब्बत कुछ नहीं कुछ चाहतों की तैयारी
कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी
वही फिर ठौर अपना वही उभरे चंचलता
दिलफेंक हूँ जो प्यार पर अक्सर लिखता
आध्यात्मिक यात्रा में आत्मपैठ की खुमारी
कहो क्या सच में होगी सोहबत हमारी।
धीरेन्द्र सिंह
23.07.2025
08.31
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