तुम भावनाओं की जनक हो
तुम कविताओं की सनक हो
तुम व्याप्त सभी रचनाकारों में
तुम लिए साहित्य की खनक हो
आप संबोधन लिख न सका, चाहा
"तुम में" अपनापन की दमक हो
याद बहुत आ रही, झकोरा बन
तुम रचना पल्लवन की महक हो
जो रच पाता, सज पाता वह तुम
जग गाता वह गीत ललक हो
रचनाकार की तुम्हीं कल्पनाशक्ति
शब्दों की गुंजित मनमीत चहक हो।
धीरेन्द्र सिंह
09.07.2025
09.29
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