जब पहली बारिश की बूंद मेरे चेहरे से टकराई
हवा महक दौड़ी सरपट भर अंग सुगंध अमराई
पहली छुवन तुम्हारी चमकी शरमाती सी घबड़ाई
बारिश प्यार का मौसम लगता नयन भरी चतुराई
चेहरा चिहुंक उठा यह कैसा गज़ब छुवन आभास
बूंद ठहर पल सरकी मृदु कोमल बोली ना दो दुहाई
सावन का यह अल्लहड़पन है पहली झमक बरसात
बदली डोली धरती बोली लो खिली प्रकृति अंगड़ाई
जब गहरे भावों से नयन तके मेरे चेहरे को अपलक
तब लगे बूंद टप्प गाल गूंजकर रोम-रोम सहलाई
तुम मिलती हो छा जाती घटा भाव बदलियां घनेरी
बारिश तो बस एक प्रतीक है तो मेरी सावनी दुहाई।
धीरेन्द्र सिंह
13.07.2025
08.57
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