रविवार, 13 जुलाई 2025

प्यार न तर्क

 प्यार करने को जी चाहे पर एज फर्क

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


बिन रिश्ते का यह बन जाता है रिश्ता

बन जाता रिश्ता तो प्यार हैं सिंकता

कौन भला है सोचता प्यार भी खुदगर्ज

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


बातें अगर सुहाती हों भाव भरे उत्कर्ष

चैट करते समय शब्द-शब्द खिलें सहर्ष

फिर चाहत में स्थान कहां पा जाता कुतर्क

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क


कविता थी मेरी या थे मेरे काव्य विचार

मनोयोग से किया उन्होंने भाव सभी स्वीकार

कब कोई भा जाए कैसे बिना किसी शर्त

उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2025

19.38





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