प्यार करने को जी चाहे पर एज फर्क
उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क
बिन रिश्ते का यह बन जाता है रिश्ता
बन जाता रिश्ता तो प्यार हैं सिंकता
कौन भला है सोचता प्यार भी खुदगर्ज
उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क
बातें अगर सुहाती हों भाव भरे उत्कर्ष
चैट करते समय शब्द-शब्द खिलें सहर्ष
फिर चाहत में स्थान कहां पा जाता कुतर्क
उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क
कविता थी मेरी या थे मेरे काव्य विचार
मनोयोग से किया उन्होंने भाव सभी स्वीकार
कब कोई भा जाए कैसे बिना किसी शर्त
उनको कोई कैसे समझाए प्यार न तर्क।
धीरेन्द्र सिंह
13.07.2025
19.38
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