सोमवार, 7 जुलाई 2025

जब भी

 जब भी

देखता हूँ आपका फोटो

उभरती है

एक नई कथा जिसमें

उल्लास की

परत दर परत रहती है

छिपी कोई व्यथा

इसीलिए फोटो

करते रहता है

मुझसे बातें, यह बोलते

क्या छुपाएं, क्या बांटे,


नहीं देखता मैं

रूप का सौंदर्य और

नहीं रचता कोई रचना

आपकी फोटो पर

बस मैं पढ़ता हूँ नित

एक नया अध्याय

है मेरे व्यक्तित्व का स्वभाव,


अपने लेखन में

दबा जाती हैं जो भाव

बोल देते हैं फोटो

सहजता से,

बीत जाता है दिन

सहजता से,


गज़ब का प्रभाव

छोड़ जाती है

दुनियादारी के झंझावात से

ताकती, बातें करती

मुस्कराहट।


धीरेन्द्र सिंह

08.07.2025

07.08


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