रविवार, 14 अप्रैल 2024

ऋचा

 

अभिव्यक्तियां करे संगत कामना

शब्द संयोजन है जिसकी साधना

 

जब पढ़ें शब्द लगे जैसे स्केटिंग

शब्द दिल खींचे सम्मोहन मानिंद

शब्दों की थिरकन पर लय बांधना


शब्द संयोजन है जिसकी साधना

 

शब्द हैं सुघड़ तो भाव भी सुघड़

शब्द सौंदर्य पर जाता दिल नड़

रूप सौंदर्य से शब्द सौंदर्य मापना

शब्द संयोजन है जिसकी साधना

 

अनेक ऋचा पर अनोखी है एक ऋचा

तादात्म्य शब्द का जहां हो न खिंचा

शब्दों के सरगम में शब्दों का नाचना

शब्द संयोजन है जिसकी साधना।

 

धीरेन्द्र सिंह

14.04.2024

14.32

शनिवार, 13 अप्रैल 2024

अतृप्ता

 

कौन सी गली न घूमी है रिक्ता

वही जिसकी उपलब्धि है अतृप्ता

 

विभिन किस्म के पुरुषों से मित्रता

फ्लर्ट करते हुए करें वृद्ध निजता

अलमस्त लेखन चुराई बन उन्मुक्ता

वही जिसकी उपलब्धि है अतृप्ता

 

नई दिल्ली है इनका निजी शिकारगाह

प्रिय पुरुष मंडली की झूठी वाह-वाह

हिंदी जगत की बन बैठी हैं नियोक्ता

वही जिसकी उपलब्धि है अतृप्ता

 

एक दोहाकार दिल्ली का है अभिलाषी

एक “आपा” कहनेवाले भी हैं प्रत्याशी

एक प्रकाशक का जाल निर्मित संयुक्ता

वही जिसकी उपलब्धि है अतृप्ता

 

हिंदी जगत के यह विवेकहीन मतवाले

अतृप्ता ने भी हैं विभिन्न कलाकार पाले

कुछ दिन थी चुप अब फिर सक्रिय है सुप्ता

यही जिसकी उपलब्धि है अतृप्ता।

 

धीरेन्द्र सिंह

13.04.2024

19.10

मान लीजिए

 

अचरज है अरज पर क्यों न ध्यान दीजिए

बिना जाने-बुझे क्यों मनमाना मान लीजिए

 

सौंदर्य की देहरी पर होती हैं रश्मियां

एक चाह ही बेबस चले ना मर्जियाँ

अनुत्तरित है प्रश्न थोड़ा सा ध्यान दीजिए

बिना जाने-बूझे क्यों मनमाना मान लीजिए

 

लतिकाओं से पूछिए आरोहण की प्रक्रिया

सहारा न हो तो जीवन की मंथर हो क्रिया

एक आंच को न क्यों दिल से बांट लीजिए

बिना जाने-बूझे क्यों मनमाना मान लीजिए

 

शब्दों में भावनाओं की हैं टिमटिमाती दीपिकाएं

आपके सौंदर्य में बहकती हुई लौ गुनगुनाएं

इन अभिव्यक्तियों में आप ही हैं जान लीजिए

बिना जाने-बूझे क्यों मनमाना मान लीजिए।

 

धीरेन्द्र सिंह


13.04.2024

18.17

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

रसिया हूँ

 

जीवन के हर भाव का मटिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ

 

प्रखर चेतना जब भी बलखाती है

मानव वेदना विस्मित सी अकुलाती है

उन पलों का प्रेम सृजित बखिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ

 

चिन्हित राहों पर गतिमान असंख्य कदम

इन राहों पर सक्रिय संशय बहुत वहम

यथार्थ रचित एक ठाँव का मचिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ

 


रस है तो जीवन में चहुंओर आनंद

आत्मसृजित रस तो है स्वयं प्रबंध

अंतर्यात्रा के पर्व निमित्त गुझिया हूँ

हाँ मैं रसिया हूँ।

 

धीरेन्द्र सिंह

13.04.2024

05.18

बुधवार, 10 अप्रैल 2024

बेअसर हो गए

 मिले जबसे धुनसे बेअसर हो गए

आपकी भावनाओं के सहर हो गए


उर्दू सी जो चली तो ग़ज़ल हो गई

देवनागरी सी तुम फिर सजल हो गई

भावनाओं के मजमें ग़दर हो गए

आपकी भावनाओं के सहर हो गए


भाषाएं भी अपनी दखल की दीवानी

प्यार में तो उलझी मोहब्बत की कहानी

दीवानगी में गज़ब के सफर हो गए

आपकी भावनाओं के सहर हो गए


चाहतों के लिए खुशियों की चदरिया

कबीरा में कहते अनूठी है नगरिया

कैसे-कैसे मोहब्बत में अमर हो गए


आपकी भावनाओं के सहर हो गए।


धीरेन्द्र सिंह

10.04.2024

20.55

सोमवार, 8 अप्रैल 2024

रूठ गईं

 वह मुझसे गईं रूठ किसी बात पर

रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर


दिल भी बोले पर पूरा ना बोल पाए

मन के आंगन रंग विविध ही दिखाए

अभिलाषाएं हों मुखरित दिखते चाँद भर

रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर


वह नहीं तो क्या करें काव्य लिखें

उसकी बातों से लिपटकर बवाल लिखें

मन हर सुर में चीत्कारता है नाद भर

रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर


सीखा देता है जीवन जीने का तरीका

जीता है कौन जीवन जीने के सरीखा

अभिनय हो जाती आदत अक्सर बाहं भर

रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर।


धीरेन्द्र सिंह


09.04.2024

09.12

साहित्यिक चोरी

 चुरा ले गया कोई कविता की तरह

यह आदत नहीं अनमनी प्यास है

छप गयी नाम उनके चुराई कविता


हिंदी लेखन की हुनहुनी आस है


छपने की लालसा लिखने से अधिक

चाह लिखने की पर क्या खास है

इसी उधेड़बुन में चुरा लेते हैं साहित्य

यह मानसिक बीमारी का भास है


मित्र बोलीं फलाना समूह में हैं चोर

हिंदी साहित्य लेखन के श्राप है

कहने लगी साहित्य छपने में है लाभ

वरना यत्र-तत्र लेखन तो घास है


मित्र की बात मान दिया सम्मान

प्यास की राह में सबका उपवास है

मनचाहा मिले तो कर लें ग्रहण

चोरियां भी साहित्य में होती खास हैं।


धीरेन्द्र सिंह

08.04.2024

16.06