सोमवार, 30 जून 2025

नारी

 कभी देखा है जग ने

एकांत में अकेले

बुनते हुए वर्तमान को

भविष्य को

निःशब्द,


कभी देखा है पग ने

देहरी से

शयनकक्ष तक

बिछी पलकों का

गुलाबी आभा मंडल

निश्चल,


कभी देखा है दबकर

मुस्कराते अधरों को

कंपित नयन को

गहन, सघन, मगन

निःस्वार्थ,



आसान नहीं है

नारी होना, जो

कर देती घर का

जगमग हर कोना,

समर्पित, सामंजस्यता बनाए

निर्विवाद,


यदि यह देख लिया 

तो समझिए

बूझ गए आप

ईश्वरीय सत्ता

आराधना की महत्ता।


धीरेन्द्र सिंह

01.07.2025

08.51


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