चेतनाओं की है चुहलबाजियाँ
कामनाओं की है कलाबाजियां
एक ही अस्तित्व रूप हैं अनेक
अर्चनाओं की है भक्तिबातियाँ
एक-दूजे का मन सम्मान करे
हृदय से हृदय की ही आसक्तियां
मन अपने उपवन खोजता चले
विलय मन से मन में हो दर्मियां
यूं ही कदम बढ़ते नही किसी ओर
कोई खींचे जैसे लिए प्यार सिद्धियां
एक पतवार प्यार की धार में चले
कोई सींचे जैसे सावन की सूक्तियाँ।
धीरेन्द्र सिंह
07.07.2025
06.32
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