सोमवार, 30 जून 2025

अभिमत

 अभी मत अभिमत देना

आंच को निखार दो

तलहटी कच्चा हो तो

नहीं पक पाते मनभाव

नहीं चाहेगा कोई इसमें निभाव,


दहक जाने दो

लौ लपक जाने दो,


चाहत की तसली

खुली आंच पर चढ़ाना

गरीबी है तो

साहस भी है,

अग्नि का है अपना स्वभाव

तेज हवा, धूल-धक्कड़ में निभाव,


भावनाओं को तल जाने दो

सोंधा लगेगा थोड़ा जल जाने दो,


कितनी हल्की, कितनी सस्ती

होती है  तांबे की तसली, जो

पानी भी गर्म करती है

खाना भी पकाती है

शस्त्र का कर ग्रहण स्वभाव

प्रतिरक्षा का करती है निभाव,


तसली को तप जाने दो

सोचो, मत रोको, विचार आने दो।


धीरेन्द्र सिंह

30.06.2025

14.29





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें