सोमवार, 9 मई 2011

डर लगता है

आलीशान मकानों से डर लगता है
सफेदपोशों से अब डर लगता है

गाँधी,सुभाष,भगत सिंह,बिस्मिल
आ जाएँ कि फिर डर लगता है

आज नेतृत्व की नियत है निठुर
कारवां के भटकने का डर लगता है

जिस मिट्टी के सोंधेपन में सरूर
बदले ना कहीं खुशबू कि डर लगता है

उफन रहीं तो कहीं सूख रहीं नदियाँ
अब कश्तियों को भी डर लगता है

प्यार में भी मिलावट ना रहे तरावट
ऐसी बनावट से अब डर लगता है.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

रविवार, 8 मई 2011

नेह तुम्हारा


अब भी मेरे नयन पुलकित
आस की राहें हैं हर्षित
कौन कहता चुक गया स्नेह
शब्द मेरे नहीं हैं कल्पित

नेह जब तक है तुम्हारा
कल्पना में तुम सा तारा
कर दिया है जग समर्पित
भावों से तुम्हारे हो समर्थित

उम्र बढ़ता सा मचान है
संवेदनाएं लिए गहन ज्ञान है
जीवन कर रहा अर्जित
शून्य स्वप्निल गहन अर्थित

मोड़ कितने छोड़ गए
तोड़ गए कुछ निचोड़ गए
एक बस आधार निर्मित
आशाओं के द्वार सुरभित.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

चाँद चौखट पर बैठा

चाँद चौखट पर बैठा चांदनी बिखर गयी
आपके चहरे को छूकर चांदनी निखर गयी
रात्रि ने करवट बदलकर आपसे क्या बात की
चंद लम्हे में ही जुल्फें आपकी बिखर गयी

आसमान में सितारे पलकें झपकाते पुकारे
ओ निशा क्या बात है क्यों तुम सिहर गयी
मेरी पलकों ने झपकने से जो किया इनकार
चन्दा की सुन फुसफुसाहटें चांदनी बिफर गयी

एक ऐसा द्वन्द जिसकी ना थी कभी कामना
मेरे और चंदा के बीच कैसे यह छिड़ गयी
आपका सौंदर्य भी दे रहा था चुनौतियां खिलकर
प्यार की प्रांजलता पशोपेश में सिफर भई

चाँदनी को कर प्रखर चंदा बरबस निहारे
आसमान भी झुक गया सितारों की बन गयी
बदलियाँ भी मेरी पलकों पर लगी गुजरने
आप तो सोयी हुयी थीं रात पूरी बहक गयी.
 


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता 
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

प्रतिक्रियाएं आपकी

प्रतिक्रियाएं आपकी प्रतीक हो गईं
लेखनी मेरी भी अभिभूत हो गई
शब्द-शब्द स्नेह की हो रही बारिश
दिल की दिल से करतूत हो गई

प्रतिक्रयाएं आपकी नभ का विस्तार ले
स्पंदनों के बंधनों की सबूत हो गई
कामनाएं पुलकित हो सजाएं कवितावली
प्रतिक्रयाएं मन्नतों की भभूत हो गई

मन कुलांचे मारता लिख रहा है
भावनाएं अंतर्मन की दूत हो गईं
प्रतिक्रियाएं मिल रहीं लगकर गले
लेखनी की प्रखर मस्तूल हो गईं.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

यथार्थ हो या कि मृगमरीचिका

अनुपम,अनुभूत हो, अज्ञेय हो
रिमझिम, झिलमिल प्रभाव है
कलरव की अनुगूंज तुम हो
चन्दा सरीखा तो स्वभाव है

चंदनीय सुगंध ले शीतलता नयी
पुरवैया का तुममें बयार है
रूप हैं तुम्हारे जग में कई  
हर रूप से बरसता प्यार है

मुस्कराहटों में वादियों की छटा
अंग-अंग सप्तक का तार है
सृष्टि सुघड़ सप्तरंगी लग रही
हर जगह तुम्हारा खुमार है

इन्द्रधनुषीय भंगिमाएं हरदम लुभाए
भावनाएं पूछतीं कहाँ इकरार है
यथार्थ हो या कि मृगमरीचिका
विश्व में असुलझा यह तकरार है.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

आपके नयन


आपके नयनों की क्यारी में
चमक रहे हैं जुगनू एकसे सारे
मेरे लबों ने जो चाहा पकड़ना
जुबान पर चढ़ गए खारे-खारे

नयन में मेघ सी पुतलियाँ उडें
बीच में चंचल मेघ कारे-कारे
पलकें फड़फड़ाए ले बेचैनियाँ
जुगनुओं में अक्स वही प्यारे-प्यारे

दरक पड़ने को है नक्काशियां कजरारी
चटक जाने को है आसमान सकारे
उफन ना जाये कहीं अब गंगा
मांझी-मांझी लगे कोई पुकारे

नयन की बात नयन ही जाने
जीवन से जुड़े हैं कई किनारे
कोशिशें भी होती हैं नाकाम अक्सर
हार जाते ना मिल पाते किनारे.
     


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

अपनी राहों पर चलनेवाले

 
अपने कर्मों में छुपा कर हसरतें सारी
राह जीवन के हम चलते रहे हरदम
लक्ष्य से छूटा ना कभी साथ मेरा
छोड़ कर साथ मेरा बढ़ते रहे हमदम

एक सिद्धांत, एक आदर्श और नैतिकता
दोस्त कहते रहे इसको एक वहम
तरक्की और तरक्की की प्यास लिए
सभी राहों पर चले लोलुपता के कदम

सफलता ही जहाँ की है पहचान बनी
सफलता पाने के हैं अजीब जतन
टूट जाता है, झुक जाता व्यक्तित्व
लोग कहते हैं वाह क्या है रतन

अपनी राहों पर चलनेवाले हैं अलग
सफल होते हैं ले अपना दमख़म  
वक्त करता है दर्ज नाम उनका
पर ऐसे लोग अब होते हैं कम.  


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता, 
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है 
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.