आलीशान मकानों से डर लगता है
सफेदपोशों से अब डर लगता है
गाँधी,सुभाष,भगत सिंह,बिस्मिल
आ जाएँ कि फिर डर लगता है
आज नेतृत्व की नियत है निठुर
कारवां के भटकने का डर लगता है
जिस मिट्टी के सोंधेपन में सरूर
बदले ना कहीं खुशबू कि डर लगता है
उफन रहीं तो कहीं सूख रहीं नदियाँ
अब कश्तियों को भी डर लगता है
प्यार में भी मिलावट ना रहे तरावट
ऐसी बनावट से अब डर लगता है.
भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
उफन रहीं तो कहीं सूख रहीं नदियाँ
जवाब देंहटाएंअब कश्तियों को भी डर लगता है
बहुत खूब ...
yaa khuda ab her baat se darr lagta hai
जवाब देंहटाएंret kee tarah nikalne ka gumaa hota hai
आज तो सच कहने से भी डर लगता है……………सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंलाजवाब... इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता. दुनिया की व्यथा का सजीव चित्रण.
जवाब देंहटाएंदुनाली पर स्वागत है-
कहानी हॉरर न्यूज़ चैनल्स की
आज के माहौल का सही चित्रण करती हुई कृति !
जवाब देंहटाएंअज का डर सच्चा है। अच्छे भाव। आभार।
जवाब देंहटाएंडर डर कर सिसकती है मानवता आज
जवाब देंहटाएं-बहुत उम्दा कहा!!
बेहद उम्दा। शानदार।
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने , इतनी बनावट और मुखौटों के साथ जी रहे लोगों के साथ बस डर कर ही रहना पड़ता है। कब कौन सा नकाब उतर जाए , कुछ कहा नहीं जा सकता, इसलिए स्वयं को किसी भी अप्रत्याशित सत्य के लिए तैयार रखना होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
Zoot ka aisa hai bolbala
जवाब देंहटाएंki ab such kehane se dar lagta hai.
sunder aur samayik rachna
बहुस सुन्दर...एक-एक शब्द भावपूर्ण
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