शनिवार, 9 अप्रैल 2011

बोल दो ना कब मिलूं


रूप हो तुम चाहतों की
निज मन की आहटों की
और अब मैं क्या कहूँ
और कितना चुप रहूँ

केश का विन्यास हो कि
अधरों का वह मौन स्पंदन
क्रन्दनी मन संग क्या करूँ
और कितना धैर्य धरूं

यह शराफत श्राप मेरा
लोक-लाज अभिशापी घेरा
मन वलयों को कितना गहूँ
और कितना जतन करूँ

प्रीत की खींची प्रत्यंचा
रीत है पकड़ी तमंचा
काव्य कितना और लिखूं
बोल दो ना कब मिलूं.




भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

आज सुबह मुस्कराई

आज सुबह मुस्कराई आपकी याद में
भोर की किरणें मुझसे यूं लिपट गई
मानों खोई राह की भटकनें कई
पाकर अपनी मंज़िल दुल्हन सी सिमट गई

व्यस्त जीवन की हैं और कई कठिनाईयॉ
आपकी यादें हैं लातीं टूटन भरी अंगड़ाईयॉ
हैं चुनौतियॉ फिर भी चाहतें मचल गईं
आपकी यादों से जुड़कर ज़िंदगी बहल गई

रात्रि के पाजेब में तारों की नई खनक
चांद चितचोर को थी प्रीत की नई सनक
आपकी ज़ुल्फों में फिर चांदनी उलझ गई
रात्रि पिघलने लगी ना कब जाने भोर हो गई.



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

पराक्रमी

शक्ति,शौर्य, संघर्ष ही नहीं है हल
संग इसके भी चरित्र एक चाहिए
पद,प्रतिष्ठा,पराक्रम से न बने दल
उमंग के विश्वास में समर्पण भी चाहिए

लक्ष्य भेदना ही धर्म नहीं है केवल
सत्कर्म को वर्गों में बांटना चाहिए
एकल हुआ विजेता तो यह कैसी जीत
वैचारिक ऊफान को भी  जीतना चाहिए

जीत-हार से बंधता नहीं पराक्रमी
पद,प्रतिष्ठा यहॉ सबको नहीं चाहिए
कर्म की धूनी पर पके लक्ष्यी कामनाएं
परिवर्तन के लिए पैगाम कोई चाहिए

एक ही सुर से जुड़ता रहा है कोरस
गीत की प्रखरता को निखारना चाहिए
नई नज़र, नई डगर हासिल नहीं सबको
धूप चुभन में सूरज को ललकारना चाहिए. 


भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.