शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

नारी नमन तुम्हें


और बोलो ना उदास दिल है बहुत
तुमको सुनने की तमन्ना उभर आई है
खुद से भाग कर तुम तक जाऊँ
फिर लगे रोशनी नस-नस में भर आई है

तुम ही हिम्मत हो, दृढ़ इरादे की डोर
भोर की पहली किरण जैसे पुरवाई है
तुम जब बोलती हो लगे गले ऊर्जा
तुमसे ही मांगती यह भोर अरुणाई है

कोमल, कंचनी काया में लचक खूब
हर आघात सह ले, अनगिनत बधाई है
आसमान से भी विशाल आँचल तले
ज़िंदगी हमेशा मंज़िल अपनी पायी है

मैं तुम्हें प्यार कहूँ या जीवनाधार
दे दिया अधिकार क्या खूब कमाई है
पौरुषता पर निरंतर कृपा अपार
नारी नमन तुम्हें गज़ब की अंगनाई है।   






भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

दीप कहाँ और कहाँ सलाई


जनम,ज़िंदगी,जुगत चतुराई
लाग,लपट,लगन बहुराई
आस अनेकों प्यास नयी है
कैसे निभेगी कहो रघुराई

चाकी बंद न होने पाये
निखर-निखर अभिलाषा धाये
मन है भ्रमित मति बौराई
श्वांस-श्वांस पसरी है दुहाई

सत्य खुरदुरा सख़्त बहुत है
समझ ना आए पीर पराई
अपने दर्द सहेजें कैसे
अब तक हमने खूब निभाई

प्रीत टीस कर चल देती है
रीति की राहों में सौदाई
मीत,मिलन,मादक मन यह
दीप कहाँ और कहाँ सलाई।    



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
 

बुधवार, 9 नवंबर 2011

यदि मैं कह पाता

यदि मैं कह पाता मन की बातें

कविता में फिर कहता क्यों
ठौर मुकम्मल सचमुच होता तो
फिर भावों में यूं बहता क्यों

सुघड़-सुघड़ जीवन, ना अनगढ़
चलती चाकी, मन रुकता क्यों
कर प्रयास, संग प्यास आस के
तृप्ति तिमिर से, डरता क्यों

प्रांजल नयनों से कर पुकार
हुंकारों से फिर हटता क्यों
मिलन प्रीत की कर जिज्ञासा
संकेतों पर, ना ठहरता क्यों

भाव असंख्य, अनगिनत अभिव्यक्तियां
अनवरत डुबकियाँ, ना उबरता क्यों
बहका-बहका मन रहे बावरा
दिल सा जीवन, ना निखरता क्यों।  



भावनाओं के पुष्पों से,हर मन है सिज़ता
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.