शनिवार, 24 मार्च 2018

जीवन मूल्य

पता नहीं जीवन समझाता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं

लोग कहते हैं जीवन गणित है
हर जीवन लचीला नमित है
मैं मनमौजी जीवन ज्ञाता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं

जो सत्य है वहीं जीवन लक्ष्य है
सभी अपूर्ण फिर भी दक्ष हैं
आवरण स्वीकार्यता आता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं

उमड़ रही भीड़ कारवां का तीर
रंक को देखिए शीघ्र बना अमीर
व्यवस्था, जुगाड से बना नाता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं

हो रहा समाज विमुख उसकी मर्ज़ी
भीड़ हिस्सा बन ना भाए खुदगर्जी
राह निर्मित कर नवीन जगराता कहीं
लीक पर चलना भाता नहीं

सबकी अपनी सोच है सिद्धांत है
सत्यता से प्रीत वह न दिग्भ्रांत है
जीवन मूल्य से हटकर अपनाता नहीं
लीक पर चलना भाता नहीं।

धीरेन्द्र सिंह

मंगलवार, 20 मार्च 2018

कार्यालय

कारवां के बदलते अंदाज़ हैं
कैसे कहें नेतृत्व जाबांज है

सूख रही बगीचे की क्यारियां
फिर भी टहनियों पर नाज़ है

सिर्फ कागजों की दौड़ चले
फोटो भी छुपाए कई राज हैं

एक-दूजे की प्रशंसा ही बानगी
कार्यालयों में यही रिवाज है

कारवां से अलग चलना नहीं
नयापन अक्सर लगे बांझ है

सांप सीढ़ी का खेल, खेल रहे
बहुत कठिन मौलिक आवाज है।

धीरेन्द्र सिंह

सोमवार, 19 मार्च 2018

बालियां

फूलों से लदी झूमे जो डालियाँ
तुम्हारी बालियां

भौरें की परागमयी लुभावनी पंखुड़ियां
तुम्हारी बालियां

तट की तरंगें बगुला की युक्तियां
तुम्हारी बालियां

भावों का वलय तृष्णा पुकार दरमियाँ
तुम्हारी बालियां

होती होंगी कान्हा-गोपी की गलियां
तुम्हारी बालियां

कपोल का किल्लोल मनभावन चुस्कियां
तुम्हारी बालियां।

धीरेन्द्र सिंह

हिंदी

चलत फिरत चौपाल चहुबन्दी
कहते सबकी जुबान है हिंदी
समरसता युग्म एकता रचाए
रश्मियों की मुग्धजाल है हिंदी

सब जानें बातों की ही हिंदी
भाषाजगत में भी चकबंदी
भाषा कामकाजी विरक्त है
दिग दिगंत जैसे शिव नंदी

कभी लगे भरमाती हिंदी
लिखित प्रयोग न पाती हिंदी
ढोल नगाड़े पर जो थिरके
ऐसी ही हिंदी हदबंदी

सुने प्रयोजनमूलक हिंदी नहीं
हस्ताक्षर को भी न भाए हिंदी
लिखित घोषणाएं हुईं बहुत
फाइल साज बजे पाखंडी।

धीरेन्द्र सिंह